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युवाओं को समझायें प्यार का सही अर्थ — “Valentine Contest”

मुद्दे की बात, कुमारेन्द्र के साथ
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युवाओं को समझायें प्यार का सही अर्थ
डॉ0 कुमारेन्द्र सिंह सेंगर

आने वाला दिन वेलेंटाइन डे के नाम से सारा समाज मनाने में लगा है। सभी आयु वर्ग के लोग आज इस दिन को आसानी से पहचानने लगे हैं। इस दिन का महत्व क्या है, शायद सभी लोग न जानते हों किन्तु यह सभी समझते हैं कि वेलेंटाइन डे को कैसे मनाते हैं। युवा वर्ग के लड़के और लड़कियां इस दिन अपने-अपने साथी को साथ लिए प्यार-रोमांस की बात करने में लगे रहते हैं।

प्रातःकाल से ही सभी का एकसूत्रीय कार्यक्रम शुरू हो जाता है। किस तरह से अपने साथी को खुश रखा जाये, कैसे उसके मन के मुताबिक कोई उपहार उसको दिया जाये, कहां, कब अपने साथी से मिलने का अवसर खोजा जाये आदि-आदि। प्यार की तलाश में तमाम सारे युवा सारा दिन भटकते ही रहते हैं किन्तु उनकी तलाश पूरी नहीं होती है।

वेलेंटाइन डे की संकल्पना हमारे समाज में विदेश से ही आई है और आधुनिकता के वशीभूत हमारा युवा वर्ग बिना किसी बात की परवाह किये इस दिन को किसी भी तरह से मनाने का प्रयास करता है। प्यार भरे दिन को मनाने की संकल्पना भले ही विदेश से आई हो किन्तु हमारे देश में प्यार-सौन्दर्य का स्वरूप बहुत पहले से ही विद्यमान था। आज आधुनिकता के नाम पर लड़के-लड़कियों का गले में हाथ डाले, बांहों में बांहे डाले मस्ती में घूमते रहते हैं। होटलों, पार्कों, क्लबों आदि की शोभा बढ़ाते रहते हैं।

युवाओं के प्यार के इस आधुनिकतम स्वरूप पर बहुत से लोगों को आपत्ति भी होती है, होनी भी चाहिए। आपत्ति इस बात पर होनी चाहिए कि प्यार जैसे पावन एहसास को आज के युवाओं ने देह के आसपास ही केन्द्रित कर दिया है। उनके लिए प्यार करने का अर्थ किसी भी रूप में अपने विपरीतलिंग वाले साथी का सान्निद्य पाना और उसका अन्त देह पर आकर ही करना होता है। इस तरह की सोच ने ही प्यार के स्वरूप को समाज में विकृत किया है।

यह तो पक्की बात है कि बाजारीकरण के इस दौर में संवेदनाओं को भी बेचने का काम किया जा रहा है तो सोचा जा सकता है कि प्यार के मनमोहक एहसास को उससे कैसे वंचित रखा जा सकता था। बाजार के हाथों में प्यार के नाम पर संवेदनाओं को बेचने का काम किया जा रहा है और इसके द्वारा युवा वर्ग की मानसिकता को ध्यान में रखकर ही उत्पाद तैयार किये जा रहे हैं। बहुत हद तक तो स्वयं युवाओं को ही उत्पाद रूप में प्रयुक्त किया जा रहा है।

ऐसी स्थिति में जबकि बाजार ने पूरी तरह से दिल-दिमाग पर अपना कब्जा जमा लिया है, युवा वर्ग पूरी तरह से उसके हाथों की कठपुतली बन गया है, हमारा भी फर्ज बनता है कि हम अपने युवा वर्ग को इस भ्रमजाल से निकालें। उनके सामने बाजारजनित प्रेम नहीं वरन् भारतीय संस्कृति के कण-कण में रचा प्रेम-सौन्दर्य रखें। हमारी मानसिकता इस बात की होनी चाहिए कि दिवास्वप्न देख रही युवाशक्ति को इस बात का एहसास करवायें कि जिस प्रेम के नाम पर वे सारा दिन इधर से उधर डोलते घूमते रहते हैं वाकई में वह प्यार नहीं है। उनको प्यार का शाब्दिक अर्थ नहीं वरन् उसका आत्मिक अर्थ बतलाना होगा।

प्यार उस एहसास का नाम है जो स्वतः स्फूर्त रूप में मन को आह्लादित करता है। मन को तरंगित करने का नाम प्यार है, अपने साथी के प्रति पूर्ण समर्पण का नाम प्यार है, स्वयं को नहीं दूसरे को प्रसन्न रखने का नाम प्यार है, देह का नहीं दिलों के मिलन का नाम प्यार है, शब्दों का नहीं मौन का नाम प्यार है, पाना नहीं न्यौछावर करने का नाम प्यार है….प्यार को मात्र कुछ शब्दों से, कुछ कार्डों से, कुछ फूलों से, कुछ उपहारों के द्वारा परिभाषित नहीं किया जा सकता है।

प्यार के नाम पर भटकन का शिकार अपनी युवा पीढ़ी को समझाना होगा कि प्यार का नाम सिर्फ वेलेंटाइन नहीं है, अपने साथी के नाम की खोज में किसी भी लड़की-लड़के की आस लगा बैठना वेलेंटाइन नहीं है, प्रत्येक वर्ष कैलेंडर की तरह से वेलेंटाइन डे पर अपने साथी को बदलते रहना भी न तो वेलेंटाइन है और न ही प्यार है। प्यार का अर्थ यदि हम अपनी युवा पीढ़ी को नहीं समझा सके, युवा पीढ़ी को यदि प्यार का एहसास न सिखा सके तो युवा पीढ़ी प्रत्येक वर्ष वेलेंटाइन डे पर इसी तरह से प्यार के नाम पर भटकती रहेगी और दिलों के एहसास के नाम पर देह के क्षणिक सुख को ही महत्व देती रहेगी।

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