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शिक्षा-ज्योति फ़ैलाने वाले लुई ब्रेल को नमन

मुद्दे की बात, कुमारेन्द्र के साथ
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आज, चार जनवरी को दृष्टिबाधितों के मसीहा एवं ब्रेल लिपि के आविष्कारक लुई ब्रेल का जन्म हुआ था. उनका जन्म फ्रांस के छोटे से गाँव कुप्रे में 4 जनवरी 1809 को मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ था. महज तीन साल की उम्र में एक हादसे में उनकी दोनों आँखों की रौशनी चली गई थी. हर बात को सीखने के प्रति उनकी ललक को देखते हुए उनके पिता ने उनका दाखिला दस वर्ष की उम्र में पेरिस के रॉयल नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर ब्लाइंड चिल्ड्रेन में करवा दिया था. उस समय स्कूल में वेलन्टीन होउ द्वारा बनाई गई लिपि से पढ़ाई होती थी पर यह लिपि अधूरी थी. इसी स्कूल में एक बार फ्रांस की सेना के एक अधिकारी कैप्टन चार्ल्स बार्बियर एक प्रशिक्षण के सिलसिले में आए. यहाँ उन्होंने सैनिकों द्वारा अँधेरे में पढ़ी जाने वाली नाइट राइटिंग या सोनोग्राफी लिपि के बारे में बताया. यह लिपि कागज पर अक्षरों को उभारकर बनाई जाती थी. इसमें 12 बिंदुओं को 6-6 की दो पंक्तियों को रखा जाता था किन्तु इस लिपि में विराम चिह्न, संख्याम, गणितीय चिह्न आदि का अभाव था. प्रखर बुद्धि के लुई ने इसी लिपि को आधार बनाकर 12 की बजाय मात्र 6 बिंदुओं का उपयोग कर 64 अक्षर और चिह्न बनाए. उसमें न केवल विराम चिह्न बल्कि गणितीय चिह्न और संगीत के नोटेशन भी लिखे जा सकते हैं.

कहते हैं ईश्वर ने सभी को इस धरती पर किसी न किसी प्रयोजन हेतु भेजा है. लुई ब्रेल के बचपन की दुर्घटना के पीछे ईश्वर का कुछ खास मकसद छुपा हुआ था. 1825 में लुई ब्रेल ने मात्र 16 वर्ष की उम्र में एक ऐसी लिपि का आविष्कार कर दिया जिसे ब्रेल लिपि कहते हैं. इस लिपि के आविष्कार ने दृष्टिबाधित लोगों की शिक्षा में क्रांति ला दी. यही लिपि आज सर्वमान्य है. उनकी प्रतिभा को देखते हुए उन्हे बहुत जल्द ही विद्यालय में अध्यापक के रूप में नियुक्ति मिली. वे पूर्ण लगन के साथ शिक्षा के क्षेत्र में कार्य करते रहे. 35 वर्ष की अल्पायु में ही क्षय रोग की चपेट में आ गये. जिसके चलते 43 वर्ष की अल्पायु में ही अंधकार भरे जीवन में शिक्षा की ज्योति जलाने वाला यह व्यक्तित्व 6 जनवरी 1852 को इस दुनिया को अलविदा कह गया.

लुई ब्रेल को उनके जीवन में वह सम्मान नहीं मिला, जिसके वे हक़दार थे. 1837 में फ्रांस का संक्षिप्त इतिहास नामक पुस्तक भी ब्रेल लिपि में छापी गई, फिर भी संसार ने इसे मान्यता देने में बहुत समय लगाया. फ़्रांस की सरकार ने ही लुई ब्रेल की मृत्यु के दो वर्ष बाद 1854 में इसे सरकारी मान्यता प्रदान की. ब्रेल लिपि की असीम क्षमता और प्रबल प्रभाविकता के कारण सन 1950 के विश्व ब्रेल सम्मेलन में ब्रेल को विश्व ब्रेल का स्थान मिल गया. उनकी प्रतिभा का सम्मान करते हुए फ़्रांस ने उनके देहांत के सौ वर्ष बाद वापस राष्ट्रीय सम्मान के साथ उनको दफनाया. अपनी इस भूल के लिये फ्रांस की समस्त जनता तथा नौकरशाह ने लुई ब्रेल के नश्वर शरीर से माफी माँगी. 2009 में 4 जनवरी को जब लुई ब्रेल के जन्म के दो सौ वर्ष पूरे हुए तो हमारे देश ने भी उन्हें पुर्नजीवित करने का प्रयास किया. उनकी द्विशती के अवसर पर उनके सम्मान में डाक टिकट जारी किया गया.

लुई ब्रेल ने अपने कार्य से सिद्ध कर दिया कि जीवन की दुर्घटनाओं में अकसर बड़े महत्व के नैतिक पहलू छिपे हुए होते हैं. ऐसे विलक्षण व्यक्तित्व को सादर नमन.

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