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समलैंगिकता को कानूनी जामा और गाँधी का अपमान — वाह जी वाह!!

मुद्दे की बात, कुमारेन्द्र के साथ
मुद्दे की बात, कुमारेन्द्र के साथ
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अभी हाल ही में एक पुस्तक प्रकाशित हुई जिसमें महात्मा गांधी के समलैंगिक सम्बन्धों को लेकर किसी प्रकार की टिप्पणी की गई है। इसके बाद से लगभग सारे देश में एक तरह का विवाद सा पैदा हो गया है। हालांकि हमने न तो इस पुस्तक को देखा है और न ही पढ़ा है, गांधी जी पर की गई टिप्पणी को भी किताब के माध्यम से नहीं पढ़ा है। जो भी, जितना भी पढ़ने में आया है वह या तो इंटरनेट पर, ब्लॉग पर या फिर समाचार-पत्रों के द्वारा।
हमने चूंकि इस बारे में पढ़ भी नहीं रखा है, न तो पुस्तक में दी गई टिप्पणी के बारे में और न ही महात्मा गांधी के बारे में। इस कारण से हम यह तो नहीं कह सकते कि गांधी जी समलैंगिक थे अथवा नहीं किन्तु इसके संदर्भ में कुछ बातों को स्पष्ट अवश्य ही कर सकते हैं।
गांधी जी को समलैंगिक बताने वाले लेखक को प्रसिद्धि चाहिए थी अथवा उसके पास कोई सबूत हैं, जैसे कि असांजे के पास, विकीलीक्स के पास होते हैं। सबूत होंगे तो उन्हें पेश करना चाहिए था और यदि सबूत नहीं हैं तो लेखक को इस तरह के विवाद की स्थिति पैदा नहीं करनी चाहिए। अब अपने विचारों की दिशा उस ओर मोड़ना चाहेंगे जहां कहा जा रहा है कि गांधी जी पर अपमानजनक टिप्पणी की गई है।
इस सम्बन्ध में उन सभी लोगों को जो लोग इस प्रकार की टिप्पणी को गांधी जी का अपमान मान रहे हैं उन्हें स्पष्ट करना होगा कि किस बात का अपमान किया गया? गांधी जी को समलैंगिक बताने का अथवा देर से बता कर एक तथ्य छुपा कर गांधी जी के व्यक्तित्व को कम आंकने का? इसके अलावा समलिंगी सम्बन्धों की गलत वकालत करने का अथवा गलत व्यक्ति से सम्बन्ध को जोड़ने का? यहां गांधी और समलैंगिक सम्बन्धों का विरोध करते समय एक बात को अब याद रखना होगा कि अब हमारा देश भी वो देश है जहां समलैंगिक सम्बन्धों को कानूनी मान्यता प्राप्त है। इसका अर्थ है कि समलैंगिक सम्बन्ध अब शर्मसार करने वाले नहीं हैं, इस देश में।
इस बात से कौन इंकार करेगा कि अदालत के समलैंगिक सम्बन्धों को मान्यता देने का विरोध हुआ तो इस तरह के सम्बन्धों के पक्षधर लोगों ने दलील दी या कहें कि कुतर्क किया कि इस तरह की मान्यता मिलने से उन जोड़ों को शर्मसार नहीं होना पड़ेगा जो समलैंगिक हैं। यदि अदालत का फैसला समलैंगिक सम्बन्धों को अपमान और शर्म से निजात दिलाता है तो गांधी का अपमान कैसे हो गया? ये तो उन जोड़ों के लिए आदर्श की स्थिति होगी जो समलैंगिक सम्बन्धों को वैद्य ठहराने के लिए किसी बड़े व्यक्ति का नाम खोजते फिर रहे थे।
गांधी के ब्रहमचर्य का भी पर्याप्त मजाक बनाया जाता रहा है इस देश में और इसके पीछे स्वयं उन्हीं की कहानी काम करती रही है। पत्नी से शारीरिक सम्बन्ध को बनाने की आकुलता ही उन्हें अन्तिम समय में अपने पिता से दूर ले गई। ब्रहमचर्य का पालन करने के बाद भी उनके चार बेटे हुए। ब्रहमचर्य का धारण उन्होंने किस उम्र में किया यह सभी को पता है, बहरहाल विवाद का विषय यह नहीं है। गांधी पर हाल ही में आई टिप्प्णी को लेकर विवाद बाद में मचाया जाये पहले तय कर लिया जाये कि समलैंगिक सम्बन्ध समाज में स्वीकार्यता की स्थिति में हैं अथवा नहीं। यदि ज्ञात हो जाये कि फलां युवा जोड़े समलैंगिक हैं तो कानूनन उनके साथ कैसा बर्ताव किया जायेगा, सम्मान का अथवा अपमान का? यदि वे कानूनन सम्मानित अवस्था में हैं तो गांधी अपमानित नहीं किये गये, हां लेखक पर अब सबूतों को सामने लाने का दवाब डालना होगा।
अदालती निर्णय के बाद यदि युवाओं के समलैंगिक होने पर उनका अपमान नहीं होता, किसी को समलैंगिक बताना उसका अपमान नहीं है तो गांधी भी अपमानित नहीं हुए हैं। एक ही विषय पर दो अलग-अलग प्रस्थिति वाले लोगों को अलग-अलग चश्मे से नहीं देखना चाहिए। समलैंगिक सम्बन्धों को कानूनी मान्यता प्रदान करवाने की लम्बी लड़ाई लड़ने वाली ‘नाज फाउण्डेशन’ इस मुद्दे पर कहां है? उनसे उनका एक आदर्श व्यक्तित्व छीना जा रहा है। सवाल एक और कि समाजशास्त्री, कानूनविद्, दर्शनशास्त्री, शिक्षा विचारक, विभिन्न दर्शनों के प्रतिपादक गांधी जी क्या जानते थे कि 21 वीं सदी में उनके देश में समलैंगिक सम्बन्धों को कानूनी मान्यता मिल जायेगी? आखिर महान व्यक्तित्व भविष्यदृष्टा होते हैं और हो सकता है कि इसी भविष्यदृष्टा होने के कारण वे भी…….!!!

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