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सोच बदलने के लिए…

मुद्दे की बात, कुमारेन्द्र के साथ
मुद्दे की बात, कुमारेन्द्र के साथ
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स्तनपान करवाती मॉडल की फोटो अब फिर से चर्चा में है. इस बार उसके चर्चा में आने का कारण उसके समर्थन में उतरी कुछ महिलाओं द्वारा सार्वजनिक स्थलों पर स्तनपान करवाने और उसकी फोटो खिंचवाकर सोशल मीडिया पर डालना रहा है. इन जागरूक महिलाओं ने इस सम्बन्ध में अपने-अपने स्तर के तर्क-कुतर्क गढ़े हैं. किसी पत्रिका के कवर पर मॉडल की स्तनपान करवाती फोटो के विवाद को शांत करने का यही सर्वोत्तम तरीका समझ आया उसके समर्थन में उतरी महिलाओं को. यदि उस पत्रिका के सम्पादक का कथन ही सच मान लिया जाये कि उस चित्र का सन्दर्भ लोगों में सार्वजनिक स्थलों पर स्तनपान करवाती किसी भी महिला के प्रति सकारात्मक सोच बनाना था. ऐसी माँ के इस कृत्य को अश्लील न समझा-माना जाये तो उसके समर्थन में सार्वजनिक स्थानों पर स्तनपान करवाती फोटो सोशल मीडिया पर शेयर करती महिलाएं क्या वाकई इसी सन्देश का प्रसार-प्रचार कर रही हैं?

 

 

असलियत में गंभीरता से विचार किया जाये तो इस तरह का प्रदर्शन किसी न किसी रूप में अपनी देह के प्रदर्शन की स्वतंत्रता की वकालत करता ही दिखता है. समाज सभी तरह के लोगों से मिलकर बना होता और उसमें अच्छे, बुरे लोगों का भी समावेश होता है. सकारात्मक तरीके से विचार करने की आवश्यकता बस इतनी है कि आज भी सड़क चलते सभी लोगों को न तो लूटा जा रहा है और न ही सड़क चलते सभी लोग लूटने में लगे हैं. स्पष्ट है कि उसी सड़क पर जहाँ लूटमार करने वाले हैं, लुटने वाले हैं, वहीं बहुतायत में ऐसे लोग भी हैं जो शांतिपूर्ण ढंग से अपना काम कर रहे हैं.

 

संभव है कि किसी सार्वजनिक स्थल पर खुलेआम किसी माँ को स्तनपान करवाते देख बहुत से व्यक्तियों की आँखों के, चेहरे के हाव-भाव बदल जाते हों. मगर इसके बाद भी ऐसे व्यक्तियों (पुरुषों कह लीजिये) की भी संख्या बहुतायत में है, जो ऐसी महिला के प्रति सामान्य भाव रखते होंगे. आज आवश्यकता ऐसी भावना के प्रचार-प्रसार की है. आज जरूरत इसकी नहीं कि सिर्फ भय दिखाकर ही शांति लाने का काम किया जाये. आज आवश्यकता इसकी भी है कि कैसे सुरक्षित भाव दिखाकर लोगों में और सुरक्षा की भावना का विस्तार किया जाये. हाँ, यदि इस तरह के आन्दोलनों, प्रदर्शनों से महिलाओं को अपनी देह के प्रदर्शन की स्वतंत्रता चाहिए तो फिर कोई बात ही नहीं है.

 

ऐसी आशंका महज इस कारण उपजती है कि समाज में बनी दशकों पुरानी अवधारणा को, सोच को बदलने के लिए आक्रामकता की बजाय, सकारात्मकता की बजाय देह-प्रदर्शन जैसी स्थिति, अशालीन स्थिति बना दी जाती है. महिलाओं की माहवारी के सम्बन्ध में सोच बदलने की जरूरत महसूस हुई तो हैप्पी टू ब्लीड जैसा आन्दोलन छेड़ दिया गया. विपरीतलिंगियों में प्रेम का आदान-प्रदान का समर्थन करने की बात सामने आई तो किस ऑफ़ लव का आयोजन कर लिया गया. अब स्तनपान को सार्वजनिक स्थलों पर सहजता से लेने की बात की गई तो उसके लिए स्तन-प्रदर्शन की राह चलाई जाने लगी.

 

स्त्री हो या पुरुष इस सन्दर्भ में इतना समझना चाहिए कि यदि देह की परिभाषा को अंगों-उपांगों के आधार पर तय किया जायेगा, उसके आधार पर निर्मित किया जायेगा तो समाज में नग्नता ही देखने को मिलेगी, अश्लीलता ही देखने को मिलेगी. यदि स्त्री की देह के अंगों-उपांगों के प्रदर्शन की आज़ादी उसे प्राप्त है तो बहुत से ऐसे पुरुष हैं जो मात्र ऐसी ही किसी आज़ादी की उंगली पकड़ना चाहते हैं. अंग के बदले अंग का प्रदर्शन समाज को कहाँ ले जायेगा, पता नहीं?

 

अंग के बदले अंग के प्रदर्शन की सोच स्त्री-पुरुष को कहाँ जाकर खड़ा करेगा, पता नहीं? और जिस तरह से प्रत्येक सकारात्मक स्थिति को महज अपने आपको स्थापित करने की भावना से विवादस्पद बनाने की भावना समाज में विकसित होती जा रही है, स्त्री-पुरुष दोनों में बलवती हो रही है उससे आशंका इसकी है कि कहीं किसी दिन दाम्पत्य जीवन के गोपन का प्रस्तुतिकरण सड़क पर न होने लगे. आखिर, सत्य को समाज को आज की भाषा में समझाए जाने की आवश्यकता जो है. गोपन को अगोपन बनाये जाने की आवश्यकता जो है.

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