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अब बारी उनकी है सांस्कृतिक धरोहर बचाने की

मुद्दे की बात, कुमारेन्द्र के साथ
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देश का एक बहुत बड़ा फैसला हुआ। राम जन्मभूमि स्थल को हिन्दुओं का स्वीकारा गया। यह सुखद फैसला है और इस दृष्टि से भी सुखद कहा जायेगा कि इससे देश की सांस्कृतिक विरासत का आधार तय हो गया।

इस फैसले को केवल इस दृष्टि से नहीं देखा जाना चाहिए कि यह हिन्दुओं के पक्ष की बात करता है वरन् इसको इस दृष्टि से भी देखे जाने की आवश्यकता है कि देश में एक धरोहर पर चली आ रही बेवजह की बहस को भी कुछ हद तक विराम दिया है।

यह फैसला उच्च न्यायालय का रहा और इससे असंतुष्ट पक्ष को उच्चतम न्यायालय में जाने का रास्ता खुला है। यही वह बिन्दु है जिस पर मुसलमान अपने को इस देश की सांस्कृतिक विरासत का पक्षकार सिद्ध कर सकते हैं। कभी भी किसी आम भारतीय की ओर से यह नहीं कहा गया कि मुसलमान इस देश के नागरिक नहीं हैं। इसको राजनीतिक नजरिये से देखे जाने की आवश्यकता नहीं है। इसके बाद भी मुसलमानों ने उस मस्जिद के लिए विवाद खड़ा किया जो उनके किसी पुरखे ने नहीं वरन् देश पर आक्रमणकारी बाबर ने बनवाई थी।

जहां तक सभी को याद होगा कि पहली बार 1992 में इस विवाद के आने के बाद मुसलमानों ने इस पर बहुत आपत्ति की थी कि उनको बाबर की औलाद के रूप में पुकारा जा रहा है। अब वही स्थिति फिर खड़ी होने वाली है, यदि बाबर मुसलमानों के लिए पूज्य नहीं है, बाबर को मुसलमानों ने अपने पूर्वज के रूप में नहीं स्वीकारा है तो फिर अब वे एकमत से, तहेदिल से अदालत के इस फैसले का सम्मान करते हुए राम जन्मभूमि पर राम का भव्य मंदिर बनने में सहयोग कर देश की सांस्कृतिक धरोहर को सहेजने में अपना भी योगदान दें।

इसके उलट यदि वे बाबर को अपना कुछ विशेष मानते हैं जो इस देश के राम से भी अधिक सर्वोपरि है, एक विदेशी आक्रमणकारी द्वारा बनवाई गई एक इमारत उनके लिए इस देश की सांस्कृतिक धरोहर से अधिक महत्वपूर्ण है तो फिर वे उच्च न्यायालय के इस फैसले के विरुद्ध उच्चतम न्यायालय में जाकर अपनी भावना को सिद्ध करदें।

अदालत को जो करना था वो कर चुकी, अब मुसलमानों को यह सिद्ध करना है कि राम का वनवास यथावत बना रहे अथवा विदेशी आक्रमणकारी बाबर को इस देश की नागरिकता दे दी जाये? हमें याद रखना होगा कि हमारे लिए कोई भी इस कारण स्तुत्य नहीं हो जाता कि वह हमारे धर्म का है, हमारी जाति का है।

अब देखना है कि मुसलमानों का अगला कदम किसके पक्ष में होता है, राम को वापस अयोध्या में प्रतिष्ठित करने के अथवा बाबर को इस देश का नागरिक बनाने में? फैसला मुसलमानों को ही करना है।

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