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बेटियों की सुरक्षा हेतु सामाजिक उपाय अपनाने होंगे

मुद्दे की बात, कुमारेन्द्र के साथ
मुद्दे की बात, कुमारेन्द्र के साथ
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इन दिनों रेप की घटनाओं की बाढ़ आई हुई है। कोई दिन ऐसा नहीं निकल रहा है जबकि ऐसी घटना की सूचना ना मिले। शर्मनाक है ऐसी स्थिति। इससे ज्यादा चिंताजनक स्थिति यह भी है कि अब ऐसा कृत्य करने वाले मासूम को भी यौन शोषण का शिकार बनाने लगे हैं। ऐसा लगने लगा है जैसे समाज से संवेदनशीलता, मानवीयता पूरी तरह समाप्त हो गई है। यौन-कुंठा का इतना वीभत्स रूप शायद की कभी देखने को मिला हो।

इस पतन के लिए वर्तमान में सामाजिक जीवन-शैली बहुत अधिक जिम्मेवार है। सेल्युलाइड पर बिखरती रंगीनियों ने, टी०वी० कार्यक्रमों की नग्नता ने एक कुंठित वर्ग को जन्म दिया है। मोबाइल के कारण हर हाथ में पोर्न सहजता के साथ उपलब्ध है। पुरुषों के उपभोग की वस्तु हो, बच्चों की आवश्यकता सम्बन्धी हो या फिर महिलाओं की जरूरत, नारीदेह दर्शन बिना किसी भी तरह का विज्ञापन पूरा नहीं होता है। अधोवस्त्रों के विज्ञापन हों, सौन्दर्य प्रसाधनों के विज्ञापन हों, गर्भनिरोधकों के विज्ञापन हों, पेयपदार्थों के विज्ञापन हों, बॉडी स्प्रे हो, वाहन का विज्ञापन हो या फिर कोई अन्य उत्पाद सबका प्रस्तुतीकरण अश्लीलता-नग्नता से भरपूर रहता है।

विज्ञापनों के अलावा फिल्मों, धारावाहिकों, म्यूजिक एल्बम, लाइव शो यहाँ तक कि कॉमेडी शो तक में महिलाओं को अशालीन, अर्द्धनग्न रूप में प्रदर्शित किया जा रहा है। उनकी भावभंगिमा, गीतों के बोल, आपसी बातचीत, संवाद अदायगी कहीं न कहीं शारीरिकता का बखान करती दिखती है। जिससे आभास होता है कि जीवन का एकमात्र उद्देश्य संभोग की प्राप्ति है। ऐसी स्थिति में वह अपनी यौनेच्छा को पूरा करने के लिए किसी न किसी माध्यम की तलाश करता है। ऐसे समय में ही उसकी यौनेच्छा का शिकार असहाय, कमजोर महिला वर्ग होता है। बच्चियां ऐसे लोगों को सबसे आसान शिकार जान पड़ती हैं।

प्रेम का किशोरवय अथवा युवाओं से सम्बंधित स्वरूप ही सामने नहीं रखा जा रहा है वरन विवाहेतर संबंधों को, जबरन प्रेम सम्बन्ध स्वीकार करवाए जाने को भी स्थापित सा किया जा रहा है। अत्याधुनिक समाज के चाल-चलन के अनुसार गर्लफ्रेंड, बॉयफ्रेंड जैसी अवधारणा भी बन गई है। आधुनिक बनने के इन क़दमों ने इन बच्चों को ही संकट में डाला है।

ऐसे विषम समय में हमें स्वयं तय करना है कि हमारे लिए प्राथमिकता क्या है, देह-दर्शना वस्त्र, यौनेच्छा को बढ़ाने वाली स्थितियां अथवा सुरक्षित समाज, सुरक्षित बच्चियां, सुरक्षित महिलायें? असल सुधार तो इस प्राथमिकता को निर्धारित करने के बाद ही होगा। महिलाओं के विरुद्ध हो रहे अपराधों को रोकने अथवा कम करने का उपाय कानूनी दृष्टि से ज्यादा सामाजिक और सांस्कृतिक है। कानून अपना काम करता ही है मगर समाज का भी अपना दायित्व होता है।

न केवल सरकार को वरन समाज को अब जागने की ही नहीं बल्कि सख्ती दिखाने की आवश्यकता है। किसी भी तरह से विज्ञापनों, धारावाहिकों, फिल्मों, कार्यक्रमों आदि में अनावश्यक रूप से नारीदेह की कामुक छवियों के चित्रण, प्रदर्शन आदि पर रोक लगाई जाए। किसी भी स्त्री को बाजार में उत्पाद की तरह से प्रस्तुत करने से बचना होगा। इसके साथ-साथ देश भर में सख्ती से पोर्न साइट्स पर पूर्णरूप से प्रतिबन्ध लगाया जाए।

विद्यालयीन पाठ्यक्रमों में नैतिक शिक्षा के साथ-साथ यौन शिक्षा को भी अनिवार्य रूप से शामिल किया जाये। बालक-बालिकाओं को संस्कारवान बनाये जाने की आधारभूमि उनके विद्यालय से ही आरम्भ की जाये। इसी तरह से बच्चियों को शारीरिक सुरक्षा सम्बन्धी प्रशिक्षण अनिवार्य रूप से विद्यालयों में दिया जाना चाहिए। एक कदम सरकार को सख्ती से उठाये जाने की आवश्यकता है और वह है वेश्यावृत्ति को कानूनी मान्यता देना। ये कहने-सुनने में भले ही असहज लगे मगर आज जिस तरह से घर-घर में, गली-गली में यौन-कुंठित व्यक्ति जन्म ले रहे हैं उनकी यौनेच्छा दमन के लिए कोई न कोई जगह अवश्य होनी चाहिए।

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