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राजनैतिक दलों के लिए भी बने निर्वाचन नियमावली

मुद्दे की बात, कुमारेन्द्र के साथ
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विगत कई वर्षों के चुनावों के बाद ऐसा पहली बार लगा है कि देश का मतदाता अब बदलाव की चाह में मतदान करने घरों से बाहर निकल रहा है। लगभग सुसुप्तावस्था में जा चुका मतदाता पिछले वर्ष अन्ना आन्दोलन के बाद से यह एहसास कर चुका है कि देश में भ्रष्टाचार के विरोध में जनान्दोलन खड़ा किया जा सकता है। इससे जागरूकता देखने को मिली और इसी जागरूकता में वृद्धि का कार्य आयोग की कार्यप्रणाली ने भी किया। आयोग के कदमों से मतदाताओं को बहुत हद तक राहत मिली है। इसके बाद भी बहुत से आमूलचूल परिवर्तनों की सम्भावना अभी भी इस निर्वाचन प्रणाली में दिखाई देती है।
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लगभग सभी स्थानों पर देखने में आता है एक व्यक्ति टिकट की प्रत्याशा में राजनैतिक दलों के चक्कर लगाता रहता है। एक दल से दूसरे की ओर, दूसरे से तीसरे की ओर उसकी दौड़-भाग बनी ही रहती है। इसके अलावा देखने में यह भी आया है कि लगभग सभी राजनैतिक दलों की ओर से तमाम सारे चुनावों में एक ही व्यक्ति अथवा एक ही परिवार का बोलबाला बना रहता है। प्रत्याशी के जीतने अथवा हारने को लेकर चुनाव लड़ने की संख्या कितनी भी पहुँच जाये पर उनका चुनाव लड़ना बन्द नहीं होता है। ऐसी स्थिति में चुनाव आयोग को चाहिए कि वह किसी भी व्यक्ति के चुनाव लड़ने के अवसरों पर रोक लगाये। किसी भी व्यक्ति को, चाहे वह जीते अथवा हारे, सिर्फ और सिर्फ दो बार चुनाव लड़ने की अनुमति दी जाये। इससे अन्य दूसरे उत्साही लोगों को चुनावों में मौका मिल सकेगा।
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दलबदल कानून हमारे यहाँ बना है और उसके सुखद-दुखद परिणाम सामने दिखाई देते हैं किन्तु इसके बाद भी राजनीतिज्ञों का चुनावों के ठीक पहले दलों की यात्रा करने का कार्य पूरे जोरशोर से शुरू हो जाता है। इस यात्रा करने का उसका मकसद केवल टिकट पा लेना रहता है। चुनाव आयोग की ओर से भी इस पर अभी तक किसी तरह का अंकुश नहीं लगाया जा सका है। आयोग को इस तरह की स्वार्थपरक राजनीति पर रोक लगाने के लिए पहल करनी चाहिए। उसके द्वारा सभी राजनैतिक दलों के लिए प्रत्याशी चयन सम्बन्धी किसी प्रकार की नियमावली बनाये जाने की आवश्यकता है जिसके आधार पर एक निश्चित समयावधि में किसी राजनैतिक दल की सदस्यता पूरी कर चुका व्यक्ति ही उस सम्बन्धित दल से टिकट का हकदार होगा। इस तरह के कदम से उन मौकापरस्त लोगों पर रोक लगेगी जो जोड़तोड़ की राजनीति से मंत्री बन जाते हैं, सरकार भले ही किसी भी राजनैतिक दल की बनी हो।
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चुनावी तन्त्र में आये दिन जिस तरह से बदलाव देखने को मिल रहे हैं और साथ ही आम जनमानस की ओर से इन परिवर्तनों को सहज स्वीकार्यता प्राप्त हो रही है वह दर्शाता है कि अब मतदाता भी स्वच्छ और सुखद लोकतन्त्र की स्थापना की चाह रखते हैं। ऐसे में यदि निर्वाचन आयोग द्वारा राजनीतिज्ञों की मौकापरस्ती, स्वार्थपरकता, परिवारवाद आदि पर अंकुश लगाने की दिशा में प्रयास किया जायेगा तो उसे अवश्य ही आम जनता के द्वारा सहजता से स्वीकार किया जायेगा। इस दिशा में कार्य करने से आयोग को भी जनमानस का भरपूर समर्थन प्राप्त होने की सम्भावना है।
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