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हमारा मजदूर कितना मजबूर

KSHAMYATAAM
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“हमारा मजदूर कितना मजबूर ”

रोटी की तलाश में निकला था घर से,
क्या पता था कभी वापस  लौट न पाएंगे
एक रोटी ही हे जिसने कोसो दूर भगाया इन्हें,
घर बार सब छोड़ने पे मजबूर कराया इन्हें
लेके चले थे ढेरो सपने अपने इन आँखों में,
वादा किया था सब साथ बैठेंगे इस सावन मेंसपने जब टूटने लगे इस महामारी के प्रकोप से,
आशा अब ना रही, ना मालिक से, ना सरकार से ,

 

सोचके निकले थे, ये कोसो का फासला पटरियो के सहारे पार कर जायेंगे,
पता नहीं था, रस्ते में थोड़ा विश्राम जो किया तो मौत की नींद सो जायेंगे।
जिनके लिए काम किया यहाँ वर्षो, उनसे मिली ना कोई राहत,
अब लाखों रूपए देकर क्यो कर रहे हो हमारी आत्मा को आहत
रोटी की तलाश में निकला था घर से,
क्या पता था कभी वापस  लौट न पाएंगे |—अजीत कुमार

नोट : यह लेखक के निजी विचार हैं और इसके लिए वह स्वयं उत्तरदायी हैं।

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