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लोकतन्त्र को मजबूत करने का एक महान अराजनैतिक अभियान
महामहिम श्री प्रणव मुखर्जी, राष्ट्रपति, भारत के प्रथम भाषण का संक्षिप्त अंश
”भारतवासियों के रूप में हमें भूतकाल से सीखना होगा, परन्तु हमारा ध्यान भविष्य पर केन्द्रित होना चाहिए। मेरी राय में शिक्षा वह मंत्र है जो कि भारत में अगला स्वर्ग युग ला सकता है। हमारे प्राचीनतम ग्रन्थों ने समाज के ढांचे को ज्ञान के स्तम्भों पर खड़ा किया गया है। हमारी चुनौती है, ज्ञान को देश के हर एक कोने में पहुँचाकर, इसे एक लोकतांत्रिक ताकत में बदलना। हमारा ध्येय वाक्य स्पष्ट है- ज्ञान के लिए सब और ज्ञान सबके लिए।
मैं एक ऐसे भारत की कल्पना करता हूँ जहाँ उद्देश्य की समानता से सबका कल्याण संचालित हो, जहाँ केन्द्र और राज्य केवल सुशासन की परिकल्पना से संचालित हों, जहाँ लोकतन्त्र का अर्थ केवल पाँच वर्ष में एक बार मत देने का अधिकार न हो, बल्कि जहाँ सदैव नागरिकों के हित में बोलने का अधिकार हो, जहाँ ज्ञान विवेक में बदल जाये, जहाँ युवा अपनी असाधारण ऊर्जा तथा प्रतिभा को सामूहिक लक्ष्य के लिए प्रयोग करे। अब पूरे विश्व में निरंकुशता समाप्ति पर है, अब उन क्षेत्रों में लोकतन्त्र फिर से पनप रहा है जिन क्षेत्रों को पहले इसके लिए अनुपयुक्त माना जाता था, ऐसे समय में भारत आधुनिकता का माॅडल बनकर उभरा है।
जैसा कि स्वामी विवेकानन्द ने अपने सुप्रसिद्ध रूपक में कहा था कि- भारत का उदय होगा, शरीर की ताकत से नहीं, बल्कि मन की ताकत से, विध्वंस के ध्वज से नहीं, बल्कि शांति और प्रेम के ध्वज से। अच्छाई की सारी शक्तियों को इकट्ठा करें। यह न सोचें कि मेरा रंग क्या है- हरा, नीला अथवा लाल, बल्कि सभी रंगों को मिला लें और सफेद रंग की उस प्रखर चमक को पैदा करें, जो प्यार का रंग है।“ (प्रकाशित 26 जुलाई, 2012, दैनिक जागरण)
शरीर की प्रत्येक कोशिका अपने आप में जीवन के सभी रहस्यों से पूर्ण होने के बावजूद भी वह शरीर पर ही निर्भर रहती है। शरीर का ही अंश कोशिका है। कोशिका को इसका ज्ञान नहीं होता परन्तु शरीर को इसका ज्ञान होता है। उसी प्रकार प्रत्येक व्यक्ति इस ब्रह्माण्ड रूपी शरीर का एक कोशिका है। इसका ज्ञान व्यक्ति को हो जाने पर व्यक्ति ब्रह्माण्ड रूपी शरीर पर निर्भर होकर भी स्वतन्त्र इकाई के रूप में कार्य करने लगता है।
वर्तमान की शिक्षा प्रणाली व पाठ्यक्रम व्यक्ति को स्वतन्त्र इकाई नहीं बनाता बल्कि वह शरीर पर सदैव निर्भर रहने वाला ही बनाता है। शिक्षा पाठ्यक्रम को पूर्ण बनाने की प्रक्रिया इतनी जटिल है कि यह इतनी आसानी से सम्भव नहीं दिखता। और जब तक ऐसा नहीं होता सभी व्यक्तियों के लिए ”विश्वशास्त्र“ पूर्ण ज्ञान के पूरक शास्त्र के रूप में उपलब्ध हो चुका है।
मनुष्यों में दो प्रकार के मनुष्य पाये जाते हैं, एक जो नौकरी माँगता हैं, दूसरा जो नौकरी देता है। क्या अन्तर है दोनों में? दोनों में अन्तर सिर्फ बुद्धि का है। ”विश्वशास्त्र“ बुद्धि का शास्त्र है। यह शास्त्र पृथ्वी पर हुये सभी शारीरिक, आर्थिक व मानसिक व्यापारों को आपके समक्ष एक साथ रखता है जिससे कि आपके सामने व्यापार के अनन्त मार्ग खुल जायें। इस शास्त्र का मुख्य उद्देष्य है- ”सभी का मानसिक स्तर एक हो और आजिविका अर्थात प्रोफेशन का ज्ञान उसकी अपने संसाधन उपलब्धता के अनुसार हो।“ जब हम सभी मानसिक स्तर पर एक हो जायेगें तब हम इस ब्रह्माण्ड रूपी शरीर के अंग बन जायेगें। फिर राष्ट्र अपने आप विकास के मार्ग पर चल निकलेगा। भ्रष्टाचार एक शासनिक समस्या है जिसके समाप्ति से ऐसा नहीं हैं कि सभी समस्यायंे समाप्त हो जायेंगी। वर्तमान समय ज्ञान युग का चल रहा है, ऐसे में व्यक्ति को पूर्ण ज्ञान से युक्त करना आवश्यक है। यह शास्त्र व्यक्ति को सीधे सर्वोच्च मानसिक स्तर पर पहुँचाता है जहाँ से ऊपर और नीचे के ज्ञान और बुद्धि को आसानी से समझा जा सके। निश्चित ही इसके शास्त्राकार को अनेक परिस्थितियों का सामना करना पड़ा होगा परन्तु अब उसके फल को ही सिर्फ व्यक्ति को ग्रहण करना है, जो सरल और सहज है।
पृथ्वी पर लोकतन्त्र व्यवस्था आने के बाद का यह पहला और शायद आखिरी शास्त्र ही होगा जो मात्र व्यक्ति को ही नहीं बल्कि राष्ट्र (चाहे उसकी सीमा विश्व क्यों न हो) पूर्ण ज्ञान से युक्त करने के लिए प्रकृति ने कालानुसार व्यक्त किया है। अर्थात यह शास्त्र समष्टि (सार्वभौम) शास्त्र है। अब तक जितने भी शास्त्र आये वे व्यष्टि (व्यक्तिगत) शास्त्र थे। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि राजतन्त्र में हम सभी साकार राजा से शासित होते थे परन्तु वर्तमान लोकतन्त्र में हम सभी निराकार संविधान व कानून से शासित होते हैं। हम जब उन नियमों व सिद्धान्तों को समझने लगेगें तो एक समय बाद सभी कुछ ठीक दिशा में चलने लगेगा। आज जो कुछ भी हम देश के प्रति नकारात्मक सोचते हैं वे सब देश के प्रति ज्ञान न रखने का ही परिणाम भुगत रहें हैं। इसलिए प्रत्येक नागरिक को ”विश्वशास्त्र“ का अध्ययन करना चाहिए जिससे वे स्वयं पूर्ण होकर देश को भी पूर्णता की ओर अग्रसर कर सकें।
विधायक, सासंद इत्यादि का चुनाव तो एक संवैधानिक व्यवस्था है यह सदैव चलता रहेगा और सरकार से प्राप्त होने वाले लाभ प्राप्त होते रहेंगे परन्तु सिर्फ सरकार पर निर्भर होकर समग्र विकास नहीं हो सकता। आज सारा देश इस समस्या से ग्रसित है। जनसंख्या, बेरोजगारी और जन समस्या के बढ़ने की गति और सरकार के द्वारा प्राप्त होने वाली सुविधा की गति में बहुत अधिक अन्तर आ चुका है। ऐसे में यदि जनसहभागिता द्वारा स्वयं अपने और अपने क्षेत्र के विकास के लिए कार्य नहीं किया जायेगा तो स्थिति विकट होती जायेगी। राजनीति के क्षेत्र में चुनाव तो होते रहेंगे और प्रत्याशी भी सदैव आते रहेंगे और वे अपने अनुसार विकास कार्य भी करते रहेंगे। परन्तु जनता का भी कत्र्तव्य होना चाहिए कि वे अपने क्षेत्र के समग्र विकास के लिए योजनाएँ बनायें और जन प्रतिनिधियों के समक्ष उसे प्रस्तुत कर उनका ध्यान केन्द्रित करें। जन प्रतिनिधियों को भी अपने क्षेत्र में ऐसे गतिविधियों पर अपने प्रतिनिधियों के माध्यम से समाचार प्राप्त करना चाहिए। अधिकतम स्थितियों में प्रत्याशी भी उसी क्षेत्र का ही निवासी होता है इसलिए उन्हें भी हार-जीत से मुक्त रहकर ऐसे विकास योजनाओं पर रूचि रखनी चाहिए।
मनुष्य के मन के ब्रह्माण्डीयकरण करने का श्री लव कुश सिंह ”विश्वमानव“ द्वारा संचालित यह कार्य एक महान अराजनैतिक अभियान है। जिससे विद्यार्थी व मतदाता सर्वप्रथम पूर्णज्ञान में स्थापित होकर विश्व व लोकतन्त्र को समझ सकें फिर स्वयं ही व्यवस्था के सत्यीकरण का मार्ग खुल जायेगा। इस अभियान में श्री लव कुश सिंह ”विश्वमानव“ द्वारा रचित ”विश्वशास्त्र“ के विक्रय से प्राप्त सभी आर्थिक लाभ को लोकतन्त्र की मजबूती के लिए ”विश्वशास्त्र“ के पाठक/मतदाता/विद्यार्थीयों और व्यवस्था परिवर्तन व सत्यीकरण तथा नवसृजन के लिए गठित पाँच ट्रस्ट
1: साधु एवं सन्यासी के लिए- सत्ययोगानन्द मठ (ट्रस्ट)
2: राजनीतिक उत्थान व विश्ववन्धुत्व के लिए- प्राकृतिक सत्य मिशन (ट्रस्ट)
3: लव कुश सिंह के रचनात्मक कार्य संरक्षण के लिए-विश्वमानव फाउण्डेशन (ट्रस्ट)
4: प्रयोगात्मक ज्ञान पर शोध के लिए- सत्यकाशी ब्रह्माण्डीय एकात्म विज्ञान विश्वविद्यालय (ट्रस्ट)
5: ब्राह्मणों के लिए- सत्यकाशी ट्रस्ट
में से सक्रिय ट्रस्ट के माध्यम से सामाजिक कार्यो, मानवता व एकात्मता के विकास हेतू आर्थिक सहायता के रूप में वितरित कर दी जायेगी। क्योंकि भले ही यह शास्त्र आपके अपने स्वयं व राष्ट्र के लिए उपयोगी है परन्तु आप इसे पढ़कर रचनाकार पर एहसान कर रहें हैं और यह एहसान वे आपसे पाने की उम्मीद रखते हैं। हम सभी यह अच्छी प्रकार जान चुके हैं कि वर्तमान व भविष्य का समय ज्ञान का है इसलिए यह शास्त्र सभी के लिए आवश्यक है। ”विश्वशास्त्र“ पूर्ण ज्ञान का पूरक शास्त्र है जो प्रत्येक घर और व्यक्ति के लिए आवश्यक है। इसे स्कूल, कालेज, विश्वविद्यालय तक पहुँचाने तक आम आदमी के लिए एक व्यापार का जन्म होता है। जिसके लिए आप इस वेबसाइट vishwshastra.com का ”बिजनेस (Business) का पृष्ठ भी देख सकते हैं।
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