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अश्कों से अपनी आँखें भिगोता रहा हूँ मैं

मेरी रचनाएँ
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अश्कों से अपनी आँखें भिगोता रहा हूँ मैं
हर रात तेरी याद में रोता रहा हूँ मैं

आवाज़ से मेरी तेरा डर से वो सिहरना
आलम है ये तन्हाई से डरता रहा हूँ मैं

तेरे साथ रह के मुझको न जीना कबूल था
बिछड़ा जो तुझसे हर पल मरता रहा हूँ मैं

रहता हूँ मैं जिस दिल में वो है मेरे करीब
अन्जान इसी बात से होता रहा हूँ मैं

न जान सका तेरी मोहब्बत को ऐ सनम
अपने ही दिल में कांटे बोता रहा हूँ मैं

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