मेरी रचनाएँ
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किये रुसवा वो मुझे आज भरी महफ़िल में
मान बैठा था ख़ुदा जिनको मैं दिल ही दिल में
उनकी नज़रों से मेरा क़त्ल हुआ जाता है
जाने क्यूँ ढूंढते हैं इश्क किसी क़ातिल में
इश्क़ बढ़ता है नजदीकी से कहते सब हैं
प्यास रह जाती समंदर किसी साहिल में
मैंने तो सोचा था दो फूल खिलेंगे इश्क़ के
यार ने कांटे बिछा रखे हैं दिल ही दिल में
एक फितरत है ग़ज़ब की हर इंसानों में
जाने क्यों ढूंढते हैं दोष किसी काबिल में
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