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कुरूक्षेत्र की कहानी है यह जब युद्ध की आशंकाओं से घिरे विदुर श्रीकृष्ण से मिलते हैं और अपनी व्यथा सुनाते हैं। कौरवों के अन्याय और पापों का दण्ड युद्धस्वरुप पूरे हस्तिनापुरवासी भुगते, यह उन्हें मंजूर नहीं था।
तो सुनिये फिर श्रीकृष्ण क्या कहते हैं
फल तो भुगतना ही होगा,
कुरूक्षेत्र के हर एक नागरिक के लिये।
हाँ ! विदुर वो बच नहीं सकते अपने मौन के लिए।
राज्य का हर वो व्यक्ति जो शांत रहा,
उस अन्याय के खिलाफ जो होता रहा और वह देखता रहा ।
भागीदार है वो भी उस पाप का, अन्याय का।
ये गर्जना थी कृष्ण की।
बोलो विदुर
भरी सभा में जब एक स्त्री का अपमान किया गया, वो क्यों चुप रहा ?
अपने ही राज्य के उत्तराधिकारी के रूप में जब एक अयोग्य को चुना गया, वो क्यों खामोश रहा ?
खुलेआम जब छल और अन्याय का खेल खेला गया, वो क्यों देखता रहा ?
सत्ताधीश मगरूर थे,
आंख पर पट्टी बांधे थे, वो क्यों अनजान रहा ?
तो तय है नियति उन सबकी।
कर्तव्य की घड़ी में पीठ दिखाने वाले,
मौन रहने वाले,
अब सजा पायेंगे।
मुझे दोष न देना विदुर,
जब ये वैभवशाली, समृद्धशाली, शक्तिशाली राज्य ढह जायगा, खण्डहर में तब्दील हो जायगा और सिर्फ मौन ही मौन बाकी रह जायगा पूरे नगर में।
ये वीरान नगर उनके ही कर्मों का फल होगा,
सो जान लो इस नियम को विदुर,
जो आज नहीं बोलेगा वो फिर कभी नहीं बोल पायेगा ।
यही सृष्टि का विधान है
यही नियम है।
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