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कृष्णा तुम जुदा हो सबसे

brajendra
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कृष्णा तुम जुदा हो सबसे ।
तुम क्या हो ? फिट क्यूँ नहीं होते किसी सांचे में ?
जब भगवान कहलाते हो, तो फिर वैसे क्यूँ नहीं लगते ?
किसी को भी देख लो, सब एक जैसे हैं । शांत, गम्भीर, निश्चित नियम और रीति को मानने वाले । आचरण बिल्कुल शुद्ध जैसा कि होना चाहिए किसी भगवान का । पहले से अनुमान लगाया जा सके ऐसे हैं वो सब, कोई रहस्य नहीं उनके बारे में, एक जैसी कथा है सबकी ।
पर तुम ?
कुछ भी निश्चित नहीं । कोई भी नियम लागू नहीं तुम पर, नियम को तोड़ना कोई नई बात नहीं तुम्हारे लिए । लीक पर चलना जैसे तुम्हें भाता ही नहीं ।
कौन सा भगवान अपने लिये जेल जैसी जगह को चुनता है पैदा होने के लिये और यदि चुन भी लिया तो माता पिता को वहीं छोड़ आये जेल में । आ गये नंद के गांव
गांव आकर क्या क्या नहीं किया तुमने । तुम झूठ बोलते हो अपनी मां से जब माखन चोरी करते हुए पकड़े जाते हो, कहते हो कि मैंने नहीं खाया । दूसरों के घर चले जाते हो चुपके से, गोपियों के कपड़े चुरा लेते हो, उनकी मटकी फोड़ देते हो बस सिर्फ माखन पाने के लिए ।
ऐसा कौन सा भगवान करता है।
गांव के बच्चों के साथ खेलते हो और उन पर ही धौंस जमाते हो, जब हारने लगते हो तो बदमाशी करते हो और तो और अपने बड़े भाई को भी नहीं छोड़ते । कितनी अठखेलियाँ की तुमने उसका कोई हिसाब नहीं ।
बाल हठ की तो पूछो मत,
मिट्टी खाने से मना किया तो मां को पूरा संसार ही दिखा दिया अपने छोटे से मुँह में ।
बंशी कौन बजाता है भला बताओ इतने प्यार से । गायों को चराना, उनके साथ जंगल में घूमना, ये कौन करता है । गोपियों को अपने रंग में ऎसा रंग दिया कि सुध ही नहीं रही उन्हें इस दीन दुनिया की । पूरे गाँव को दीवाना बनाकर रख दिया ।
और फिर चले गए उन सबको छोड़ कर अचानक से ।
मथुरा पहुंचे तो बिल्कुल अलग ही रूप में, योद्धा बन गये, बंशी छोड़ अस्त्र शस्त्र पकड़ लिये । युद्ध लड़े और जीते । फिर अचानक से भाग गये युद्ध के मैदान से रणछोड़ बनकर और चले गए द्वारका । प्रेम किया और अपने प्रेम के कहने पर जगत परंपरा के विपरित जाकर हरण भी कर लिया, बिल्कुल भी न सोचा कि क्या होगा ।
फ़िर जब भरी सभा में जब एक अबला ने संकट में याद किया तुम्हें तो तुम बिल्कुल अलग ही रूप में दिखे, एक नायक के रूप में । युद्ध का शोर जब चारों ओर फैला हुआ था तो तुम्हारा अलग ही राग था शांति का, युद्ध रोकने के लिए हस्तिनापुर पहुंच गये शांतिदूत बनकर ।
सिर्फ पांच गांव के लिये ही राजी हो गए थे तुम । कितना बड़ा फैसला था यह एक बड़े शक्तिशाली राज्य के बदले सिर्फ पांच छोटे गांव । बात जब फिर भी नहीं बनी, तो दिखला दिया अपना विराट स्वरुप राजसभा में और कह दिया बाँध सको तो बाँध लो।
कितना भय पैदा कर दिया था तुमने वहाँ मौजूद उन सभी वीरों के मन में जो अपने घमंड में चूर थे और कुछ भी सुनने को तैयार नहीं थे । कैसा रूप था तुम्हारा उस सभा में, सिर्फ तुम ही तुम थे वहाँ ।
जब युद्ध की बारी आई तो अस्त्र शस्त्र न उठाने की कसम खा ली और सारथी के रूप में सामने आ गये । पूरे संसार को जो चला सकता है वो अब रथ चलायगा अपने सखा का ।
गुरु भी बन गये जब देखा अपने सखा को संशय में । याद दिलाया उसका ध्येय । बता दिया कि कुछ नहीं होगा चिंता करने से उठो और करो जो है तुम्हारे हिस्से का, अपने कर्म से तुम अपने बच नहीं सकते ।
तुम अलग हो कृष्णा
सच में
हर एक बात में
लिखकर बताना, ये संभव नहीं
सब तुम्हें अपने पास रखना चाहते हैं एक बालक, एक प्रेमी, एक सखा, एक गुरू के रूप में । एक तुम ही तो हो कृष्णा जो आनंद की बात करता है, जिंदगी के हर पल को जीना सिखाता है तुम्हारे ख्याल से ही मन प्रफुल्लित हो उठता है ।
तुम सम्पूर्ण हो कृष्णा ।
भगवान होने के पैमाने में भी फिट नहीं होते, कम लगते हैं तुम्हारे सामने ।
किसी भी आकार में तुम्हें ढालना संभव नहीं ।

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