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साथी

brajendra
brajendra
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(शहीद सैनिकों की याद में,
संवेदनाएं उन सभी सैनिकों के लिये जो युद्ध या किसी बर्बर आतंकवादी घटना में शहीद हो गये । उन सभी लोगों के लिये, जो इससे प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित हुए, और ताउम्र इस जख्म की पीड़ा से गुजरेंगे । पर जरा सोचिये जो चले गए वो लौटेगे तो नहीं, पर जो है उनके लिये क्या सोचते हैं हम ।
कितना अजीब है कि इतने समय के गुजर जाने के बाद भी हम जीवन के लिये ज़रूरी कुछ मौलिक सुविधाएँ भी अपने लोगों को नहींदे पाये । हमारे ये वीर सैनिक उन जगहों से भी आते हैं, जहाँ के लोग साफ पानी, भोजन, सड़क, बिजली, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी आधारभूत सुविधाओं से आज भी महरूम है । मरने-मारने की बातें तो चलती रहेंगी, पर उनके परिवार वालों को, उनके गाँव वालों को सम्मानपूर्वक जीवन जीने के लिए एक स्वस्थ माहौल मिले, कुछ इसकी बात भी बीच बीच में कर लीजिये। शायद कुछ बदल जाये ।)
आंसू तो खूब बहाये तुमने,
अब एक काम और करना ।
जाना तुम उस शहीद के घर, वो जो मर मिटा है अपने देश पर।
पर कैसे जाओगे उसके गांव …?
मैं बताता हूँ ….
देखना कि कौन सी कबाड़ा बस है, और कितनी भीड़ है उसमे ।
जैसे ही देख लो, समझ लेना वही है ।
पर ध्यान रखना साथी, बड़े मजबूत बनके जाना ।
वो रास्ता थोड़ा कच्चा है; नयी सड़क तो उसी साल की बारिश में बह गयी थी न इसीलिये ।
जब बस में सवार हो जाओ तो अपने आस पास देखते रहना; कहीं ऐसा न हो कि कोई बिना पूछे ही तुम्हारी शर्ट का रंग अपने पान की पीक से लाल कर दे ।
जब गाँव आ जाए तो पूंछना कि वो घर कौन सा है, जहाँ वह बलिदानी रहा करता था ।
चलना फिर उन गलियों में, धूल से सनी हुई, गंदे पानी से भरी हुई। बच कर चलना साथी,नहीं तो अपने जूते भी तुम पहचान न पाओगे।
बीच बीच में लोग भी मिलेंगे छोटे छोटे झुंडों में खाली खाली से ।
पर वहाँ न रुकना साथी, चलते रहना वो तो किसान है, उनकी कौन सुनता है ? अभी रुकोगे तो बरबाद हुई फसल दिखाने लगेगे,तुम तो फसलों को भी नहीं पहचान पाते, इसलिए चलते रहना ।
जब आयगा घर उसका तो मिलना सभी से ।पर एक बात कहूँ, पानी मत मांगना बहुत दूर से लाना पड़ता है, और हाँ ! तुम बीमार पढ़ जाओगे गन्दा पानी पीने की आदत तो नहीं है तुम्हें।
वो तो लाएगे, अपने हिस्से का पानी तुम्हें पिलाने को, पर मत पीना । कह देना कि अभी अभी पीकर आया हूँ ।
फिर देखना कि कौन कौन है वहां?
जैसे यहां पूंछ लेते हो किसी के घर जाकर; मत पूंछना उसके बेटे से कि स्कूल क्यों नहीं गया ? क्योकि जो वो स्कूल है न टूटा-फूटा सा,वहां डर है कहीं दीवार न गिर जाये । फिर रिस्क लें भी तो किसलिए, शिक्षक तो वहाँ कोई है नहीं । साथी अब तुम ही बताओ खाली स्कूल में भला कोई क्यों जायगा ।
उससे ये भी न कहना कि उसकी बनयान फट गयी है । एक ही बनयान है उसके पास । मां झेंप जायगी उसकी, कुछ कह भी नहीं पाएगी इसलिए खामखाँ बच्चे को पीट देगी और घर के अंदर कर देगी ।
एक जवान लड़के से भी मुलाकात हो सकती है तुम्हारी, अगर घर में हुआ तो । भाई है उसका, थोड़ा कमजोर हो गया है । पढ़ने में तो बहुत होशियार था, इसलिए परिवार वालों ने ज़बरदस्ती उम्मीदों का पहाड़ बना लिया। अब उसी को लादे,रोजगार की तलाश में दर दर भटकता दुबला हुआ जा रहा है । उनको किसी ने बताया ही नहीं अब नौकरियां ऐसे नहीं मिलती, सब काम कंप्यूटर करने लगे हैं और फिर कोई गॉडफादर भी तो चाहिए न इसके लिये । थोड़ा समझा देना ।
जो बैठे होगे एक तरफ उसके बाबूजी, तो जाना और बैठना पास उनके, थोड़ी देर सुनना । पर उनकी बीमारी का न पूंछना । कई बीमारियाँ है उन्हें, मैं ही बता देता हूं।पर गांव का वैध्य अब रहा नहीं तो किसको अपना रोग बताये । अस्पताल वहां अभी पहुंचा नहीं और शहर में कोई उनकी सुनता नहीं ।
माँ तो रो पड़ेगी, जब सुनेगी तुम आये हो और वह पुराना फोटो तुम्हारे सामने रख देगी। तुम कुछ कह भी न पाओगे साथी ।
तुम्हारे लिये ये अच्छा ही है कि उन्हें कम दिखता है और अब याद भी कम ही रहता है इसलिये वहाँ ज्यादा देर न लगाकर उसके पास जाना जो अब शांत-शांत सी रहती है । साथी ! पहले वह ऎसी नहीं थी, पर अब हो गयी है । साथी तुम कुछ कह तो न पाओगे पर कुछ देर बैठना वहां और फिर सोचना
वह क्यों शहीद हुआ और किसलिए हुआ, क्या बिना इसके काम नहीं चल सकता था। गर वापिस आ जाता वो, तो यह चेहरे ऎसे न होते ।
पर ज्यादा न सोचना साथी ! अंधेरा होने से पहले निकल आना ।
एक ही बस आती है वहां से, अगर निकल गयी तो फिर कहाँ जाओगे अंधेरे में; बिजली वहां रहती नहीं और जिस मोबाइल के सहारे रहने के आदी हो, वो वहां काम आता नहीं।
तो लौट आना साथी और परेशान न होना। ऎसे किस्से तो आम है। जहाँ जाने को सड़क न हो, पीने को पानी न हो, खाने को भोजन मुफीद न हो, रात में बिजली न हो, स्कूल और अस्पताल वहाँ के लिये अज़नबी जैसे हों, वहाँ शहीद होना ज्यादा अच्छा है। तो साथी लौट आना और उनकी शहादत पर आंसू न बहाना ।

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