Menu
blogid : 27084 postid : 4

वो क्यों जमीन पर चलते हैं!

brajendra
brajendra
  • 6 Posts
  • 0 Comment

पेड़ों पर रहने वाले बंदरों को हमेशा ही शिकायत रही है कि कुछ बंदर जमीन पर चलने का प्रयास क्यूँ करते हैं…? वो हमेशा ही ऐसे बन्दरों से चिढ़ते है और अपने बाकी साथियों से उनकी शिकायत किया करते हैं । उनका स्पष्ट मानना है कि इन सबसे आने वाली पीढ़ियों पर गलत असर पड़ेगा और वह अपनी पहचान को कायम नहीं रख पाएंगे । एक पेड़ से दूसरे पेड़ पर उछल कूद करना ही तो उनकी संस्कृति है, उनके हिसाब से जीने का यही सही तरीका है, जमीन पर चलना तो कहीं से भी उनके लिए मुफीद नहीं ।
पर ये कुछ बंदर उनकी राय से इत्तेफाक नहीं रखते । उन्हे यह अजीब लगता है कि ताउम्र पेड़ों पर ही अपनी ज़िंदगी गुज़ार दें । वॊ चलना चाहते हैं, अपने दो पैरों पर सीधे खड़े होकर । वो देखना चाहते हैं कि इसके आगे क्या है ? क्या वो खूबसूरत है ? पर वो कैसे जानेंगे यदि पेड़ों से नीचे ही नहीं आयेंगे । यह सोच ही उनमें फर्क पैदा कर रही थी ।
अब ऐसे बंदरों के साथ कौन रहना चाहेगा, जो जमीन पर चलना चाहते हो बनिस्पत के पेड़ों पर सुरक्षित जीवन जीने के ।
पहले तो खूब समझाया उन्हें प्यार से, वास्ता दिया आपने पूर्वजों का, अपनी परम्पराओं का, जब नहीं माने तो डराया, धमकाया और जब फिर भी न माने तो भगा दिया अपने समाज से ।
अब वो दूर थे अपनों से, अकेले थे ।
पर उन्हें टोकने वाला भी अब कोई नहीं था । वो आज़ाद थे, चलने के लिए ।
लेकिन पेड़ों पर उछल-कूद करने में और इस तरह से जमीन पर चलने में जमीन आसमान का अंतर था । यह कोई आसान काम तो बिल्कुल नहीं था । दो पैरों पर खड़े होना भी बड़ा कष्टदायी था, होता भी क्यों न । आखिर चार पैरों का बोझ दो पैरों पर जो आ गया था । पैरों का थकना वाजिब था, चलना तो दूर खड़े होना भी मुश्किल था । कई साथी तो पीछे हट गये और वापिस चले गये अपनों के बीच उन्हीं पेड़ों पर, जहां से वो आये थे । बड़ा मुश्किल वक़्त था वह, साथी साथ छोड़ रहे थे और शरीर बेदम हो रहा था ।
वो गिरे कई बार, पर खड़े हुए और फिर चले ।
और फिर क्या हुआ…. ?
उन्हें हासिल हुई एक नयी चीज… दो हाथ ।
वरदान मिल गया उन्हें । जो अभी तक पैर थे वो अब हाथ में बदल गये थे । ऐेसे हाथ जो सब कुछ कर सकते थे । ये पेड़ों की डालों और टहनियों को पकड़कर सिर्फ झूलते ही नहीं थे, अपितु उनसे वह आग जलाते, घर बनाते और अपनी सुरक्षा भी करते । बारिश में भीगने और ठंड में ठिठुरने की नौबत अब उनके लिये नहीं थी ।
वो आगे बढ़ने को तैयार थे ।
जंगल छोड़ा, गांव बनाये, शहर बनाये और वो सब कारनामे किये, जो किसी को भी हैरान करने के लिये काफी थे । कौन इनको देखकर कहेगा कि ये वही बंदर है, जो कभी पेड़ों पर रहा करते थे ।
लगता है सही था उनका निर्णय, सबसे हटकर अपना रास्ता चुनने करने का । पर यह तो जुनूनी और साहसियों का ही काम था, वरना कौन इतनी ज़हमत उठाता भला । अंजाम देखकर, सराहना करना कितना आसान है, पर आगाज़ कितना कठिन रहा होगा ? ये कौन जान सकता है, उन चंद जुनूनी और साहसियों के अलावा, जो आये थे पहली बार पेड़ों से उतरकर और खड़े हुए थे सीधे अपने दो पैरों पर ।
हालांकि पेड़ों पर रहने वाले बंदर अब भी कोसते हैं उन्हें, अपनी परंपरा को छोड़ने के लिए ।
उनकी महान परंपरा…. ।
पेड़ों पर उछल-कूद करने की, चार पैरों पर चलने की… ।

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh