एक गुमनाम ख़त
आज फिर तुम्हें खत लिखने बैठा हूं,
पुरानी यादों को फिर से संजोने बैठा हूं।
साथ बिताए, हर लम्हें को,
फिर से महसूस करने बैठा हूं।
तुम्हारी यादों के अतीत में,
फिर से जाने को बैठा हूं।
आज फिर तुम्हें खत लिखने बैठा हूं।
पहली मुलाकात से लेकर अबतक,
की हर बात को लिखने बैठा हूं।
प्यार – मुहब्बत, लड़ाई – झगड़े,
हर अहसास को लिखने बैठा हूं।
आज फिर तुम्हे खत लिखने बैठा हूं।
आना – जाना, मिलना – बिछुड़ना,
हर पल को फिर से जीने बैठा हूं।
तेरे यादों के काफिले को,
फिर से रोकने बैठा हूं।
आज फिर तुम्हें खत लिखने बैठा हूं।
साथ बिताएं हर अदभुत पल को,
फिर से दोहराने बैठा हूं।
बड़े दिनों के बाद,
आज फिर तुम्हें खत लिखने बैठा हूं।
आज फिर तुम्हें खत लिखने बैठा हूं।
…..by Lahar
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