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मन का मनन -३

Abhivyakti
Abhivyakti
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आज सुबह जब मैं सैर पर गया तो कहते सुना किसी को,
एक बेईमान दुकानदार को भी ईमानदार नौकर चाहिए,
बात थी छोटी सी लेकिन गहरी बहुत थी,
मन को भायी बहुत कहने लगा क्या बात कही है,
मैंने कहा मन से कहता तो मैं भी बहुत कुछ हूँ तुझ से,
लेकिन तू मानता कब है,
कितनी बार कहता तुझसे मत कर मनमानी
लेकिन तू कर जाता है,
तेरे ही कारण ही तो ये संसार है विचारो का,
मैं कहता तुझसे देख आलस न कर,
लेकिन तू बार बार चलाता मुझे उसी राह पर,
मैं कहता तुझसे देख न उलझ इस संसार मैं,
लेकिन तू कहता कुछ नही हैं इसके सिवा,
आज जब मैं कहने लगा किसी को सड़क पर पड़ा देख कर,
आ चल मदद करते है उसकी तू बोला ये तेरा क्या लगता है,
बेकार के झमेले में न पड़ चल अपने काम लग,
हुआ क्या होगा उस आदमी के साथ जानता नही,
लेकिन एक सोच की लकीर एक सवाल छोड़ गया था मेरे सामने,
उलझा दिया है तूने मुझे, चलाता हैं मुझे अपने कहे,
क्या करना है क्या न करना शायद ये फैसला मैं नही तू ही लेता है
आज सुबह की बात जो तुझे भायी बहुत थी लेकिन उतरी नही भीतर तेरे,
क्यों होता अपने, अपने में बेईमान करता मेरा मेरा,
एक सवाल पूछु बता जरा करते करते मेरा मेरा
चले गये इस दुनिया से न जाने कितने क्या उनके साथ गया क्या ,
देख तू बेईमान दुकानदार न बन,
और मैं तो ईमानदार पहले से ही था,
क्यों न इस बात को बदल डाले,
कह दे हम दोनों ज़माने से ईमानदार को पहचान है ईमानदार की,
ऐ मेरे मन ले कसम तू ईमान की,
दिखायेगा बनके सच्चा “इंसान” की|

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