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मन का मनन-६

Abhivyakti
Abhivyakti
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आज सुना मैंने रास्ते कहाँ खत्म होते है जिन्दगी के सफर में,
मंजिल तो वही है जहाँ ख्वाहिशे थम जाये
कितना बड़ा सच है ये, इतना सच जितना मै खुद
गाँव बड़ा सुहाना था बेशक लेकिन उफ ये मन
क्या करूँ इस हवा पानी का और बड़े से घरबार का
क्या करूँ इन लोगो का जो बंधे है खूंटे से
ये बड़ा से खूंटा दायरा बड़ा है इसका एक ये जानकारो की दुनिया और दूसरा सजा सजाया संसार
और बंधन सबसे बड़ा इन लोगो के चेहरे पर आशाये और मुझसे प्यार
लेकिन कैसे पूरी करता मैं ये उम्मीदे उनकी,
बड़ी परेशानी का सबब था मेरे लिये उधेड़ बुन से भरा,
अचानक सुझा मुझे, क्यों न ख्वाहिशो को जगाया जाये,
चला जाये यहाँ से पाने के लिए मंजिल
लेकिन मेरा ये संसार, कैसे छोडूं इस गाँव को
कैसे मुंह फेरु इन सबसे पूरी करने के लिए उम्मीदे इनकी
उधेड़ बुन पूरी थी लेकिन ख्वाहिशो ने अनोखा काम किया
ले चला तूफान ख्वाहिशो का मुझे शहर की तरफ मिलाने मंजिल से
होने चला था शामिल मैं “खुद में बंद रहने वालो की दुनिया में”
हर किसी की अपनी अलग दुनिया थी बाहर की नही अन्दर की थी
मंजिल क्या हो, कैसे मिले, सवाल आया ख्वाहिशो की भीड़ से
और हिदायत भी देख, जो भी हो बड़ा होना चाहिए
इस मन की ख्वाहिशे अपार थी
एक धीमी सी दबी दबी आवाज आत्मा की आई
देख ध्यान से ख्वाहिशो की भीड़ में
मंजिल को पाने में ईमानदारी को न भूल जाना
बड़ी मुश्किल से, बड़ी शिद्दत से, संभाला तेरे बडो ने इसे
बड़ी मुश्किल घड़ी थी, मंजिल भी पानी थी लेकिन
ईमानदारी को साथ रख के, दामन थाम कर सच्चाई का और
साथ ही साथ संस्कारो का पुलिंदा सर पर संभाले
क्या करूँ, कैसे करूँ, बड़ा कन्फयूज था, लगा ऐसा जैसे
मेरी समझदारी का वल्ब ही फ्यूज था
कुछ दिन बीते, मन की उचाट चालू थी
कुछ कर, ख्वाहिशे मुंह फाड़ कर बैठी थी
जैसे पीछे से मेरे कान में आकर बोलती
मेरा कुछ करो, मेरा पेट भरो, मुझको बड़ा करो
एक बड़ी सी लिस्ट थी ख्वाहिशो की मेरे सामने याद दिलाती
तू गाँव में सब को उम्मीद देकर आया है
तेरा जीवन तेरा नही, उनका है
मैंने सोचा अरे, ये मन इतना समझदार कब से हो गया
पहले तो ऐसा न था, ये इसे क्या हो गया
धीरे धीरे बात समझ आने लगी,
ये तो इसका स्वभाव है तृष्णा का,
हमेशा कहता, है ये इसका, दूसरा कैसे मैं हूँ ना
धीरे धीरे जिन्दगी का सफर आगे चल पड़ा लेकिन ख्वाहिशे
और बड़ी होती गयी इनको पूरा करने में मेरी जिन्दगी खो गयी
मंजिल रोज बदल जाती मन की
रुक कर देखा तो पाया इन ख्वाहिशो को पूरा करते करते
मेरी जिन्दगी खत्म हो गई
इस ख्वाहिंशों के सफर में छोटी पड़ गयी ज़िन्दगी
ख्वाहिशे बड़ी हो गयी
बीत गया वक्त, विदाई हो गयी |

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