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मन का मनन-4

Abhivyakti
Abhivyakti
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ये क्या कह गया था वो अपनी जुबां से
साबुत थी मैं लेकिन कटी कटी सी
सुना था कट के भी नही कटती जुबां कभी
लेकिन ये क्या, मुझे तो ऐसा काटा कि
काटो तो खून नही,
सन्न सी रह गई थी मैं उसकी बदज़ुबानी पर
याद नही पड़ता मुझे, मैंने कभी सुना देखा था ऐसा
होंठ सिले के सिले रह गये थे मेरे उसके सामने
मजाल क्या कि एक लब्ज़ जो आया हो जुबां तक
क्या कहूँ अपनी किसी से, मेरी तो हैं कहानी यही
तलाशती हूँ इज्ज़त हर किसी की जुबां से
लेकिन कम ही मिलते हैं जो समझे मुझे
यहाँ से जेहन में आता मेरे सवाल
ये होता क्यों मेरे साथ ही हमेशा ऐसा
बंधी हूँ डोरियो से, उतरना खरा कसौटी पर सदा
कभी कभी ऐसी छटपटाहट कि हो जाऊं आज़ाद
इन डोरियो से जो बंधी मेरी किस्मत में
लिखूं अपनी किस्मत अपने हाथो से
काट के फेंक दूँ ये बंधन जो बंधे है, जकड़े हैं,
मेरी रूह को लेकिन कैसे,
ये सवाल उछल के सामने आ खड़ा हुआ मेरे
आसान नही हैं ये, लेकिन नामुमकिन नही,
हाँ ऐसा ही है, जैसे पुराना मर्ज़ कोई,
हंसता हैं ऊपर से देखकर हमे वो खुदा
क्या गज़ब बन गया ये काले सिर वाला
पूछता खुद से और बोलता भी खुद ही
न बनाना था मुझे ऐसा इसे
क्या गजब खुराफात भरी इस खोपड़ी में
कि हर किसी को कहता जैसे मान मुझे खुदा अपना
मन ही मन कहता ये आम आदमी अपने आप से
जमाना तो बदलना चाहता मैं भी लेकिन दो रोटी के
जुगाड़ में वक्त ही नही मिलता
क्या आपने जिंदा कठपुतली देखी हैं कभी,
जिंदा कठपुतली, हाँ भई जिंदा कठपुतलियां
अरे भाई सीधी सी बात है इसमें चौंकना कैसा
आपके आस पास ढेरो जिन्दा कठपुतलियां हैं
और एक बात कहूँ, सच बताना, पूरे न सही
पर कही न कही, आप भी कठपुतली सरीखे ही हैं
हाँ, नाचते आप उस मन के कहे,
मन की अंगुलियों ने नचाया अपने
इशारे पर तुम्हे और जरा गहरे में उतरे
तो पता चलेगा ये जहरीली जुबां,
ये हसरतें जमाने को समेटने की
इन्ही ने ही तो बनाया हैं कठपुतली तुझे
अगर तुझे सच में ही कठपुतली बनने का शौक हैं
तो बन उस प्यारे की कठपुतली और
यदि बनाने का शौक हैं तो
बना अपने मन को कठपुतली
अगर ये कर सका तो मन से पार पा गया
और इस जीवन का सच्चा आधार पा गया |

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