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ग्राम-स्वराज

chintan
chintan
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रोजगार के नाम पर,
मची हुई है लूट |
नेता की थाती बनी,
हर सरकारी छूट |||
मनरेगा की आड़ में,
जनता का धन खाय|
कागज पर तालाब खुदा,
खुद छप्पर लियो छवाय|||
मीड-डे-मील की योजना,
पर कैसी ये मार|
बच्चो को राशन मिला,
खा गए कोटेदार|||
महंगाई सुरसा बनी,
हर किसान निरुपाय|
भाजी खुद पैदा करे,
सुखी रोटी खाय|||
सरकारी अनुदान है,
मुखिया की जागीर,
बेढंगे हाथो में पहुँची,
गावों की तकदीर|||
हर ग्रामीण बेहाल है,
कैसा जनता का राज|
ग्राम-सभा तो बन गयी,
क्या आया ग्राम-स्वराज||||

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