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जिम्मेदारी से भागते राजनीति के संत

chintan
chintan
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ये राजनीति का चौसर है,
सब अपने पासे फेक रहे|
बहुमत बस एक बहाना है,
सब अपनी रोटी सेक रहे|||
वो कल तक पक्के वैरी थे,
अब शांति-ध्वजा लहराए है|
खोयी सत्ता हथियाने को,
समर्थन का जाल बिछाए है|||
उनके उजले दामन पर भी,
नाकामी का ना दाग रहे,
राजनीति के संत तभी,
जिम्मेदारी से भाग रहे|||
शर्तों से अभिमंत्रित करके,
उसने ब्रह्मास्त्र चलाया है|
दूजे ने सम्मुख नत होकर,
जीवन की आश लगाया है||
आरोपो-प्रत्यारोपों की,
चलती तलवार दुधारी है|
चक्की के दो पाटो में,
अब पिसती दिल्ली बेचारी है|||
जनता के बने हितैषी वो,
पर करते केवल बाते है|
सत्ता जब खुद चलकर आयी,
तो जाने क्यों कतराते है|||
कुर्सी की ऐसी बेकदरी,
आगे पड़ सकती भारी है|
उनके बुनियादी मूल्यों पर,
भारत में चर्चा जारी है|||

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