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जब से एक नेता से यारी हुयी है।
न जाने ये कैसी बिमारी हुयी है।।
अब पैसे ने ऐसा है जादू पसारा।
कही रेत बिकता, कहीं पर दियारा।।
कछारों पर भी दावेदारी हुयी है।
न जाने ये कैसी बिमारी हुयी है।।
बनाने को सब गांव शहरों के जैसा।
सफाई मे भी अब तो आता है पैसा।।
घरौंदे बने उनके होती तैयारी।
गरीबों की एक लिस्ट होनी है जारी।।
गरीबी में भी हिस्सेदारी हुयी है।
न जाने ये कैसी बिमारी हुयी है।।
कभी रक्षा सौदों में होती दलाली।
कहीं सत्ता की नीति और नियत काली।।
सफाई सुशासन की करते सब बातें।
पर गुंडों संग मजलिश में कटती है राते।।
ये कैसी विकट नातेदारी हुयी है।
न जाने ये कैसी बिमारी हुयी है।।
कहीं धर्म के नाम पर होता धंधा।
कहीं देखा लाशों को मिलता न कंधा।
कहीं नभ को छूने की है होड़ जारी।
कहीं पर निवाले से खाली है थारी।।
मुझे क्या मेरी मति तो मारी हुयी है।
न जाने ये कैसी बिमारी हुयी है।।
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