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थप्पड़ नहीं भुला सकती

अभी है उम्मीद
अभी है उम्मीद
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marये पूछ्ना की आप खाना कब खाएंगे.उस दिन उसके मार खाने की वजह बन गया.हर रोज की तरह आज भी मोहन के घर से रोने चिल्लाने की आवाज आ रही थी. पूजा (मोहन की पत्नी) बार-बार कह रही थी मुझे मत मारो जाने दो मुझे लेकिन उस के कान पर जूं तक नहीं रेंग रहा था . अगल बगल के लोगों के लिए भी ये नई बात नहीं थी. इसलिए उस की मदत करने कोई नहीं आया और हर बार की तरह इस बार भी वो रात भर रोती रही और रोते-रोते सो गई.


सुबह हुई तो मोहन पूजा से ऐसे वर्ताव कर रहा था जैसे रात को कुछ हुआ ही न हो और पूजा भी चुपचाप अपने काम में लगी हुई थी.मानो ये बात उसके काम में शामिल हो.


आज महिला सशक्तीकरण की खूब चर्चा है.सरकार से लेकर मीडिया तक इस बात को दोहरा रहा है कि देश में महिलाओं की हालत में बदलाव आ गया है.अक्सर कुछ प्रसिद्ध महिलाओं की सफलता की मिसाल दी जाती है.यह सच हैं कि औरतों की हालत में सुधार हुआ हैं.वे सामाजिक-आर्थिक रूप से समर्थ हो रही हैं  लेकिन यह बदलाव एक खास तबके तक ही सीमित हैं आज भी महिलाओं का बड़ा वर्ग पहले की तरह ही असहाय हैं आज भी स्त्रियां भेदभाव और हिंसा का शिकार हो रही हैं.सशक्त समझी जाने वाली शिक्षित कामकाजी महिलाएं भी इससे बच नहीं पा रही हैं.


भारतीय प्रबंधन संस्थान, बेंगलुरु और इंटरनैशनल सेंटर फॉर रिसर्च ऑन वुमन द्वारा किए गए एक शोध के अनुसार उन शादीशुदा महिलाओं को, जो काम पर जाती हैं, घरेलू हिंसा का ज्यादा खतरा झेलना पड़ता है.जिन महिलाओं के पति को नौकरी मिलने में दिक्कत आ रही हैं या नौकरी में मुश्किलें आ रही है, उन्हें दोगुनी प्रताड़ना झेलनी पड़ रही हैं.शोध मैं चौंकाने वाली बात यह थी कि प्रेम विवाह करने वाली महिलाएं भी बहुत ज्यादा हिंसा झेल रही हैं.


परिवार में पहले हिंसा की शिकार मां हुआ करती थीं, अब बेटियां भी हो रही हैं.आंकड़े बताते हैं कि देश में पिछले दो दशकों में करीब 18 लाख बालिकाएं घरेलू हिंसा की शिकार हुई हैं.हार्वर्ड स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ के शोधकर्ताओं के मुताबिक उन बालिकाओं की जान को खतरा बढ़ जाता है, जिनकी मां घरेलू हिंसा की शिकार होती रही हैं.जबकि ऐसा खतरा बालकों को नहीं होता.शोध के मुताबिक पति की हिंसा की शिकार औरतों की बच्चियों को पांच वर्षों तक सबसे ज्यादा खतरा होता है.हालांकि इसकी एक बड़ी वजह उपेक्षा भी है.लड़कियों के टीकाकरण तक में लापरवाही बरती जाती है.बीमारी में उनका इलाज तक नहीं कराया जाता. महिलाओं को न जाने कितने मोर्चों पर यंत्रणा झेलनी पड़ती है.


आज लड़कियां जब शादी कर के अपने पति के घर आती है. तो हजार सपने उनके आंखों में होते है लेकिन वो सपने धरे के धरे रह जाते है जब उन्हें घरेलू हिंसा का  शिकार होना पड़ता हैं. हिंदी फिल्मों का एक विदाई गीत है – मैं तो छोड़ चली बाबुल का देश पिया का घर प्यारा लगे. दशकों से यह गाना बहुत लोकप्रिय रहा है पर अफसोस कि बाबुल का देश छोड़कर ससुराल जाने वाली बहुत सी महिलाओं के लिए यह गाना अब बिल्कुल जले पर नमक छिड़कने जैसा काम कर रहा हैं.


महिलाओं को उनके पति, भाई या पिता इसलिए पीटते हैं, क्योंकि उन्हें तर्क और टोकाटाकी पसंद नहीं है.सबसे ज्यादा वो महिलाएं पिटती हैं. जो अपने पति को शराब पीने से मना करती हैं. ऐसा एक शोध से पता चला हैं.

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