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मध्यकालीन युग में सरेआम महिलाओं की बोली लगाना आम बात थी, लेकिन आज हम 21वीं सदी में जी रहे हैं, फिर भी ऐसी घटनाएं हों, यह सचमुच समाज के माथे पर सबसे बड़ा कलंक है. और आज भी ऐसा हो रहा हैं. आपको ये जानकर हैरानी होगी कि आज भी इस आधुनिक युग में कुछ पैसों की खातिर बेटीयां बिक रही है . उसकी बोली लगाई जाती है . जो सबसे ज्यादा बोली लगाता है वो उसको हासिल करने में कामयाब हो जाता है . जैसे बेटीयां इंसान नहीं बल्की कोई वस्तु या समान हो .
आज हम आपको एक ऐसे जगह की सच्ची कहानी बता रहे है जो आपको ये सोचने पर मजबूर कर देगी की क्या बेटीयों को सच में दुनिया में आने से पहले ही मार देना चाहिए. क्योंकी जब वो यहां आकर जो इतना कष्ट सहेगी उससे तो अच्छा है कि जन्म के समय ही उन सब कष्टों से मुक्ती दे दी जाए.
हम यहां हरियाणा की बात कर रहे है .हरियाणा के गांवों में अब शादी दो आत्माओं का मिलन नहीं रह गई है. इसके विपरीत, शादी एक व्यापार बन गया है.एक रिपोर्ट के अनुसार पूर्वी भारत के दूर-दराज क्षेत्रों से दुल्हनें 30 से 40 हजार रुपयों में खरीदी जाती हैं . ये कोई आश्चर्यजनक बात नहीं है. क्योंकी जो लिंग अनुपात एक हजार पुरुषों की तुलना में महिलाएं 877. उस स्थिती में ये होना लाजमी हैं.
इन हालात में दो प्रश्न सामने आते हैं. पहला यह कि आखिर लिंग अनुपात में इतना अंतर क्यों है ? दूसरा दुल्हन खरीदने के रिवाज के साथ मानवीय अधिकारों का मामला भी जुड़ा है. यहां के लोगों की मानसिकता अभी भी बेटे पर ही अटकी हुई है. वे सोचते हैं कि बेटा ईश्वर का आशीर्वाद है और बेटी शाप.
यह सोच समाज को शर्मिंदा करती है.और इसी मानसिकता के कारण शादी के लिए लड़कियां नहीं मिलतीं तथा दूसरे राज्यों से दुल्हन खरीदने की नौबत आती है.
गरीब परिवार की बेटियां चढ़ती हैं इनकी भेंट..
ऐसे तो बेटीयों को अभीशाप ही समझा जाता हैं. लेकिन अगर वो किसी गरीब के घर पैदा हो गई तो इससे बड़ा पाप या अभीशाप कुछ नहीं हो सकता हैं. उड़ीसा, बिहार, पश्चिमी बंगाल, झारखंड और असम के गांवों में दो जून रोटी को तरस रहे गरीब परिवारों की बेटियां इस अमानवीय सोच की भेंट चढ़ती हैं आज कल गरीब घर की लड़किया ही सबसे ज्यादा शिकार होती है. वे अपनी तथाकथित ससुराल में घरेलू हिंसा और शोषण का शिकार तो होती ही हैं, उन्हें खाना पकाने, अन्य घरेलू काम करने के साथ-साथ अपने मालिक को वारिस भी देना होता है.
इस सबके बावजूद उसे पत्नी का दर्जा नहीं मिलता हैं उनकी स्थिति एक नौकरानी से ज्यादा नहीं होती. हरियाणा में अगर खरीदी हुई दुल्हन अगर बेटे को जन्म नहीं दे पाती तो उसकी हालत और भी दयनीय हो जाती है.
अपहरण कर के भी लाई जाती हैं बेटियां
हरियाणा में एक गैर सरकारी संगठन के संस्थापक सुनील सिंह कहते हैं कि इन महिलाओं की स्थिति घर में रखी किसी वस्तु से ज्यादा नहीं होती.गरीबी से जूझ रहे अभिभावक भी अपनी मर्जी से बेटियों को बेचते हैं.ऐसे मामले भी हैं जहां लड़कियों का अपहरण कर लिया जाता है और उनके परिवार कभी नहीं जान पाते कि उनकी बेटियां कहां गईं.
अनवरी हरियाणा के एक व्यक्ति को दस हजार रुपयों में बेच दी गई.उसकी शादी ज़बरदस्ती छह बच्चों के बाप, एक प्रौढ़ ट्रक ड्राइवर से कर दी. अनवरी कहती है कि 22 साल की एक जवान लड़की भला अपने बाप की उम्र के व्यक्ति के साथ अपनी इच्छा से शादी कैसे कर सकती है.
चार हजार से 30 हजार रुपए में लगती है बोली
यहां पर लड़कियों को चार हजार से तीस हजार तक में बेचा जाता है. और उनके मां बाप को उसकी पूरी राशी भी नहीं दी जाती है.और अगर हरियाणा में लड़किया नहीं मिली तो फिर बाहर से खरीद कर लाया जाता है .
यौन गुलामों की तरह होता है इस्तेमाल
रिपोर्ट यह भी कहती है कि इन महिलाओं को यौन गुलामों की तरह इस्तेमाल किया जाता है और फिर आगे किसी अन्य व्यक्ति को बेच दिया जाता है. ये जवान महिलाएं जिन्हें दुल्हनों के रूप में बेच दिया जाता है, वे हरियाणा में ‘पारो’ के नाम से जानी जाती हैं.
एक अनुमान के अनुसार, केवल पूर्वी कबाइली राज्य झारखंड से 45 हजार ‘पारो’ लाई गई हैं. दलाल उनके अभिभावकों को बेटी के एवज में 500 से 1000 रुपये तक देते हैं.
हरियाणा में एक केस ऐसा भी आया था, जब एक व्यक्ति ने अपनी ‘पारो’ की केवल इसलिए हत्या कर दी, क्योंकि उसने उस व्यक्ति के भाइयों के साथ सोने से मना कर दिया था.
इस पूरी कहानी को पढ़ने के बाद कोई भी यही कहेगा की इतने कष्ट सहने से तो अच्छा है कि बेटीयां आए ही नहीं . आप का क्या ख्याल हैं इस बारे में .
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