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बारह साल पहले कि बात है, मेरे एक मित्र को एक लड़की से प्रेम हो गया . लड़की दूसरे शहर में रहती थी . फिर भी दोनों की दीवानगी किसी का भी दिल पिघला दें . क्या कशिश थी दोनो के प्यार में . हमारे देश में लड़कियों कि शादी लड़कों के मुकाबले कम उम्र में होती है . तो क्या हुआ लड़कि कि शादी कि उम्र हो गई है और लड़का तब तक अपने पैरो पर खड़ा नहीं हुआ था . दोनों ने अपने दिल पर पत्थर रखा और वही किया जो समाज कि रिवायत है . लड़कि ने कहा मैं तुम से बहुत प्यार करती हूं . लेकिन मैं अपने पापा से भी बहुत करती हूं . और उनकों हर्ट नहीं कर सकती हूं . लड़के ने भी उसकी मजबूरी समझी और , फिर दोनों एक दूसरे से कभी नहीं मिले . ये सुन कर मैं भी बहुत भावुक हुई . और कई दिनों तक परेशान भी रही .
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अक्सर लोगों से इस तरह कि शिकायते सुनी है कि जब हमें इश्क हुआ , तब वक्त हमारे साथ नहीं था. अगर वक्त ने जरा सी मेहरबानी दिखाई होती तो आज मेरा दिल अजीज साथी ताउम्र मेरे पास ही होता हमेशा धड़कनों के करीब रहता . हालांकि, ऐसा लोग सिर्फ ऐसे ही बोलते है असलियत तो कुछ और ही होती है अपनी नाकाबिलियत या सामाजिक जकड़नों का दोष बिना वजह समय पर मढ़ा जाता है और दूसरी बात ये है कि लोग प्यार तो करना चाहते है पर समाज के दायरे में रह कर . लेकिन जो सही मायने में कभी मोहब्बत कि इजाजत नहीं देता.
भारत में आर्दश विवाहित जीवन के कई उदाहरण मिल जांएगे , लेकिन एक सच्चा प्रेम का उदाहरण शायद ही मिल पाएंगा .ज्यादातर मामलों में लोग , जो प्रेम में होने का दावा करते है , प्रेम नहीं करते प्रेम के नाम पर अपने सोये हुए अंहकार को पुष्ट करते है ,अंहकार ये कि कोई तो है जो मुझ पर फिदा है या नहीं तो ये अंहकार कि मैं कितना महान हूं कि प्यार में कुछ भी कर गुजरने को तैयार हूं . अंहकार प्रेम का बहुत बड़ा दुश्मन है , इनके रहते प्रेम संभव नहीं है . जब मन अंहकार से मुक्त होता है तो कोई वक्त को नही कोसता है, जिसका भी साथ मिलता है , पुरी शिद्द्त से इंनसान उससे मुहब्बत करता है ,
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