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उत्तरप्रदेश के प्रयागराज में चल रहे धार्मिक आयोजन कुंभ का शाही स्नान, वसंत पंचमी (10 फरवरी) को संपन्न हुआ। हालांकि कुंभ का आयोजन माघी पूर्णिमा के स्नान तक चलेगा और इसके बाद वहाँ महाशिवरात्रि का स्नान होगा। कुंभ का यह स्नान पर्व करीब 49 दिनों का तय किया गया।
प्रयागराज कुंभ में संपन्न हुए शाही स्नान के दौरान एक बात सामने आई कि, सनातन परंपरा से जुड़े अखाड़ों के साधु -संतों को शाही स्नान में अपने साथ शस्त्र न ले जाने की सलाह दी गई थी। जो जानकारी सामने आई है उसके अनुसार साधु-संतों ने इस तरह की सलाह को दरकिनार कर दिया और वे अपने साथ शस्त्र ले गए। जिसके बाद से ही इस मामले में चर्चा हो रही है।
वस्तुतः स्नान के दौरान साधु-संतों द्वारा शस्त्र ले जाना अखाड़ा परंपरा से जुड़ा है। अखाड़े की यह परंपरा धर्म रक्षा से संबंधित है। आदि शंकराचार्य ने लगभग छठी शताब्दी में जिन मठों को स्थापित किया था, उनके साथ उन्होंने शास्त्रार्थ और शस्त्र दीक्षा की परंपरा भी स्थापित की। इन मठों की स्थापना बौद्ध धर्म के बढ़ते प्रभाव के कारण की गई।
कालांतर में जब भारत पर विदेशी आक्रमण होने लगे, और भारत की सनातन, वैदिक परंपरा को नष्ट किया जाने लगा। तो साधु-संतों ने इसके लिए रक्षात्मक उपाय किए। ऐसे में अखाड़ों की स्थापना की गई और इन अखाड़ों के साथ साधु, नागा सन्यासियों के रूप में सामने आने लगे। इन नागा साधुओं ने धर्म की रक्षा के लिए शस्त्रों का संचालन प्रारंभ कर दिया।
इसी के साथ अस्त्र – शस्त्र अखाड़ों की शान हो गए, और विभिन्न धार्मिक आयोजनों पर साधु-संतों द्वारा इनका प्रदर्शन किया जाने लगा। साधु – संत शाही ठाठ- बाँट के साथ स्नान पर्वों के लिए निकलने लगे। तत्कालीन मराठा साम्राज्य काल में इस स्वरूप को पेशवाई का नाम दिया गया और साधु-संत पेशवाई व स्नान के दौरान शस्त्रों को अपने साथ रखने लगे। मौजूदा दौर में भी अखाड़ों द्वारा इसी तरह की परंपरा का निर्वहन किया जाता है।
हालांकि अब आम श्रद्धालुओं की संख्या बढ़ने, साधु-संतों की तादाद में इजाफा होने और कई अन्य कारणों से संभावित तौर पर साधु -संतों को अस्त्र -शस्त्र साथ में न रखने की सलाह दी गई।
इसका एक कारण विभिन्न अखाड़ों में साधु-संतों के अपने संघर्ष और उनके बीच हुए विवादों को भी माना जा सकता है। कई बार साधुओं के बीच अपने वर्चस्व और अस्तित्व को लेकर खूनी विवाद तक हुए हैं, सिंहस्थ 2016 जो कि, मध्यप्रदेश के उज्जैन में संपन्न हुआ, इसमें भी कथिततौर पर साधु-संतों के विवाद सामने आए। यह भी कहा गया कि, कुछ साधुओं ने अपनी नाराजगी के चलते डंडे से एक नागरिक को ही पीट दिया।
हालांकि इस तरह के विवाद शांत हो गए और एक महत्वपूर्ण धार्मिक आयोजन सफलता के साथ संपन्न हुआ। वर्ष 1998 में हरिद्वार में आयोजित महाकुंभ में दूसरे शाही स्नान के दौरान भी विवाद सामने आए।
यहाँ स्नान क्रम को लेकर जूना अखाड़ा व निरंजनी अखाड़े के साधुओं में विवाद हुआ। विवाद इतना बढ़ गया कि, खूनी संघर्ष की स्थिति बन गई। हालांकि बाद में यह आयोजन भी सफलतापूर्वक संपन्न हुआ। मगर साधु-संतों के बीच वर्चस्व की लड़ाई एक महत्वपूर्ण समस्या है। धर्म की जड़ों को मजबूत करने व आमजन में साधुओं के प्रति श्रद्धा को बनाए रखने के लिए इस तरह के संघर्षों के समापन की महती आवश्यकता है।
वस्तुतः शस्त्र प्रदर्शन और शस्त्र पूजन, यह भारतीय वैदिक शास्त्र के साथ जुड़ा है। प्रतिवर्ष अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की नवरात्रि के बाद आने वाले विजयादशमी पर्व पर शस्त्र पूजन किया जाना यह वर्षों पुरानी परंपरा रही है।
क्षत्रिय मान्यता के अनुयायी परिवारों में इस तरह की परंपरा को अपनाया जाता है। इसी के साथ राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ व विभिन्न राज्यों के पुलिस विभाग द्वारा भी शस्त्र पूजन किया जाता है। इस तरह की परंपरा हमारे वैदिक जीवन को दर्शाती है कि, वैदिक काल ने शस्त्र और शास्त्र दोनों को ही समान आदर प्रदान किया है।
इसके इतर यदि किसी राजनीतिक दल द्वारा अपने प्रचार तंत्र को सक्रिय बनाने के लिए शस्त्र संचालन का प्रदर्शन किया जाता है तो, महज हंगामे के बाद विवाद समाप्त कर दिया जाता है।
दूसरी ओर अन्य धर्मों के जुलूस निकाले जाने पर जब शस्त्र प्रदर्शन किया जाता है तो विरोधी चुप्पी साधे बैठे रहते हैं। इस तरह के प्रदर्शन को राजनीतिक चश्मे से देखा जाता है और इसे सेक्युलरिज़म का नाम दे दिया जाता है।
इन अवसरों पर शस्त्रों को साथ न रखने की सलाह किसी के द्वारा जारी नहीं की जाती। जबकि साधु-संतों को लोककल्याण के नाम पर ऐसा करने के लिए कहा जाता है।
जो भी हो, सिंहस्थ, कुंभ और आदि प्रमुख धार्मिक पर्वों और स्नान अवसरों के दौरान जब करोड़ों की तादाद में आने वाली धर्मप्राण जनता के सैलाब को प्रबंधित किया जा सकता है तो फिर, शैव मत के 7, (श्री पंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी, श्री पंच अटल अखाड़ा, श्री पंचायती अखाड़ा निरंजनी, श्री तपोनिधी आनन्द अखाड़ा, श्री पंचदशनाम जूना अखाड़ा, आदि) बैरागी वैष्णव मत के 3 (श्री दिगम्बर अनी अखाड़ा, श्री निर्वाणी अनी अखाड़ा, श्री पंच निर्मोही अखाड़ा,) उदासीन संप्रदाय के 3 श्री पंचायती बड़ा उदासीन अखाड़ा, श्री पंचायती अखाड़ा नया उदासीन, और आवाह्नन,निर्मोही, दिगंबर,अग्नि, निर्मल अखाड़ों के साधु -संतों व किन्नर अखाड़ों के प्रतिनिधियों व संतों को लेकर आवश्यक प्रबंध क्यों नहीं किए जा सकते।
आम नागरिकों द्वारा अपनाए जाने वाले जन-जीवन में, विभिन्न अवसरों पर जब बेरोक-टोक शस्त्र प्रदर्शन किए जाते हैं तो फिर साधु-संतों को इनके प्रदर्शन व इन्हें अपने साथ न रखने की सलाह देना उचित नहीं है। ऐसे में इस दिशा में चिंतन की आवश्यकता है।
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