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भगवान शिव का पूजन अतिसरल है। शिवजी का स्मरण करने मात्र से ही वे प्रसन्न हो जाते हैं। उन्हें किसी विशेष दिन याद करने की आवश्यकता नहीं होती लेकिन कुछ ऐसे अवसर होते हैं जब शिव आराधना करना बेहद पुण्यदायी होता है। ऐसा ही एक अवसर होता है शिव नवरात्रि। यह शब्द पढ़कर आप आश्चर्यचकित हो उठेंगे। अभी तक आपने देवी नवरात्रि के बारे में सुना होगा, और यह जानकर आपको आश्चर्य होगा कि, भगवान शिव के दरबार में भी नौ दिनों तक उनका विशेष श्रृंगार और पूजन किया जाता है।
पौराणिक मान्यता के अनुसार फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की पंचमी से नौ दिनों तक शिवनवरात्रि का उत्सव मनाया जाता है। बारह ज्योर्तिलिंग में से एक श्री महाकालेश्वर मंदिर में इस उत्सव का मनाया जाना अतिमहत्वपूर्ण है। उत्सव के दौरान अतिरूद्र, लघुरूद्र आदि पाठों का उच्चारण व वैदिक पूजा-अर्चना की जाती है। इन नौ दिनों में ज्योर्तिलिंग श्री महाकालेश्वर को आकर्षक मुघौटों से सजाया जाता है। भगवान को फलों की माला, मुंडों की माला, नागफनी, कुंडल आदि धारण कराए जाते हैं।
इस दौरान भगवान छत्र भी धारण करते हैं। पर्व के प्रत्येक दिन अलग – अलग श्रृंगार किया जाता है जिसमें शेषनाग,घटाटोप, छविना, होलकर, मनमहेश,उमामहेश,शिवतांडव स्वरूप शामिल हैं। नौ दिनों तक भगवान इन विभिन्न स्वरूपों में भक्तों को दर्शन देते हैं। इन स्वरूपों में उमामहेश स्वरूप में श्री महाकालेश्वर भगवान के साथ माता पार्वती भी विराजित होती हैं, जबकि शिवतांडव स्वरूप में भगवान को नृत्य की शैली में दर्शाया जाता है। होलकर मुघौटा, मंदिर में पूजन के इतिहास को दर्शाता है। इस मुघौटे का पूजन होलकर रियासत काल से किया जा रहा है।
भगवान अपने इन स्वरूपों में श्रद्धालुओं की मनोकामना को पूर्ण करते हैं। इसके अलावा श्री महाकालेश्वर मंदिर परिक्षेत्र में ईश्वरीय कथा का पारायण,कीर्तन आदि कार्यक्रम संपन्न होते हैं। शिवनवरात्रि के बाद फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को शिव-पार्वता का विवाह पर्व, महाशिवरात्रि के तौर पर मनाया जाता है। पर्व के दौरान भगवान का दुल्हे स्वरूप में श्रृंगार कर, सेहरा सजाया जाता है। इस पर्व पर लाखों श्रद्धालु मंदिर में उमड़ते हैं। पर्व के अगले दिन वर्ष में केवल एक बार दिन में होने वाली भस्मारती दोपहर करीब 12 बजे संपन्न होती है।
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