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जम्मू कश्मीर के पुलवामा में गुरूवार को सीआरपीएफ के काफिले पर हुए आत्मघाती हमले के बाद देशभर में आतंक को लेकर आक्रोश फूट पड़ा है। हमला ऐसे समय हुआ है जब देश में लोकसभा चुनाव के प्रचार-प्रसार का माहौल है लेकिन बावजूद इसके कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी का यह कहना कि, यह वक्त सेना और सरकार के साथ खड़े होने का है। उनकी संवेदनाओं और सद्भाव को दर्शाता है। दूसरी ओर केंद्र सरकार ने पाकिस्तान को दिए गए मोस्ट फेवर्ड नेशन का दर्जा वापस लेने का निर्णय लेकर ‘बदले’ का शोर मचाकर सरकार पर दबाव बनाने वालों को बता दिया है कि, अपनी संप्रभुता और अखंडता को लेकर भारत किसी तरह का समझौता नहीं कर सकता।
भारत सरकार द्वारा हमले के बाद फौरी तौर पर लिया गया यह एक अहम फैसला है। आतंकवाद का दंश झेल रहे भारत के लिए यह हमला नई बात नहीं है लेकिन चिंताजनक बात यह है कि, श्रीनगर – जम्मू हाईवे क्षेत्र में लेथेपोरा से गुजर रहे काफिले को करीब साढ़े तीन सौ किलो के विस्फोटक से लदे वाहन से टकराना सहज नहीं है।
आतंकियों ने इसके लिए पूरी तैयारी की होगी। सबसे बड़ी बात यह है कि, जम्मू -कश्मीर में आतंक के नेटवर्क को मदद किस तरह से मिल रही है। बिना स्थानीय मदद के आतंकियों द्वारा इस आपरेशन को अंजाम देना आसान नहीं लगता। दरअसल राज्य का यह क्षेत्र काफी अंदर है और पंपोर से इसकी निकटता है। दूसरी ओर इस क्षेत्र से कुछ दूरी पर ही सीआरपीएफ का पुलिस हेडक्वार्टर और पुलिस लाईन्स है।
इससे पता चलता है कि आतंकियों ने हमले को अंजाम देने के लिए कितनी तैयारी की होगी। इस आतंकी वारदात के तार भी पाकिस्तान में संरक्षण प्राप्त आतंकी संगठन जैश ए मोहम्मद से जुड़ने से यह साफ हो गया है कि पाकिस्तान अभी भी भारत के विरूद्ध चलाए जाने वाले इस्लामिक आतंकवाद को बढ़ावा दे रहा है।
हालांकि यह हमला एक आत्मघाती आतंकी हमला है, लेकिन पाकिस्तान को अपनी पनाहगाह बनाने वाले आतंकी संगठन जैश ए मोहम्मद का नाम सामने आने के बाद यह एक गंभीर बात हो जाती है कि अमेरिका द्वारा तमाम सैन्य प्रतिबंध झेलने के बाद भी पाकिस्तान इस्लामिक आतंकवाद की ओर झुका हुआ है।
वह अपनी धरती से संचालित होने वाले आतंकी कैंप्स को लेकर किसी तरह की कड़ी कार्रवाई नहीं कर पा रहा है।पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई और पाकिस्तानी सेना ने अपनी सरकार को किस कदर दबाव में रखा हुआ है यह हाल में हुए हमले से पता चल जाता है।
उल्लेखनीय है कि कई मौकों पर यह बात साबित हो चुकी है कि, भारत के खिलाफ आतंकियों द्वारा किए गए हमलों में पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी और कथिततौर पर पाकिस्तानी सेना के रेंजर्स तक मदद करते रहे हैं।
भारत के उरी हमले के बाद की गई सर्जिकल स्ट्राईक में, पाकिस्तान में मिले आतंकियों के लांच पैड और वहां मारे गए पाकिस्तानी रेंजर्स व आतंकियों के शव इस बात को दर्शाते हैं कि, पाकिस्तान आतंकवाद को प्रश्रय देता रहा है।
निःसंदेह अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर आतंकवाद के मसले पर होने वाली वार्ता में भारत पुलवामा हमले से जुड़ी जानकारी सामने रखता है तो यह अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पाकिस्तान को अलग – थलग करने में मददगार होगा।
सीआरपीएफ के काफिले पर हुए हमले में शहीद हुए करीब 44 जवानों के बलिदान को देश कभी भूल नहीं सकता लेकिन जल्दबाजी में लिया गया कोई भी कदम भारत के लिए मुश्किलें पैदा कर सकता है। देश में इस समय लोकसभा चुनाव के प्रचार – प्रसार का माहौल है।
निकट भविष्य में लोकसभा चुनाव की तिथियों की घोषणा की जा सकती है ऐसे में भारतीय सेना द्वारा किसी बड़े जवाबी हमले को अंजाम दिया जाता है तो, भारत का सुरक्षा व अर्थतंत्र प्रभावित हो सकता है।
दरअसल जिस तरह का फिदायिन हमला पुलवामा में किया गया, वैसे हमले अफगानिस्तान में भी किए गए, सैन्य विशेषज्ञों का मानना है कि इस तरह के हमले बड़ी तैयारी के साथ किए जाते हैं, ऐसे में कुछ और हमलों का सामना भारत के सैन्य तंत्र को करना पड़ सकता है। जिसके कारण किसी बड़ी सैन्य कार्रवाई या सर्जिकल स्ट्राईक को अंजाम न देते हुए फिलहाल भारत के लिए पाकिस्तान के खिलाफ आर्थिक व अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबंध लगाना उचित है।
हालांकि भारत और पाकिस्तान के बीच सिंधु नदी जल विवाद पर अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में वाद चल रहा है लेकिन बावजूद इसके सिंधु और इसकी सहायक नदियों के पानी की सप्लाय को पाकिस्तान के लिए प्रभावित कर भारत उस पर मनोवैज्ञानिक दबाव बना सकता है।
पाकिस्तान के आर्थिक हालात बेहद खराब हैं और ऐसे में पाकिस्तान के लिए सऊदी अरब का निवेश एक सहारा बना तो दूसरी ओर अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष से भी पाकिस्तान मदद की गुहार लगा चुका है।
जबकि सऊदी प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान के भारत सरकार के साथ भी अच्छे रिश्ते रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खाड़ी देशों के अतिरिक्त कई मुस्लिम राष्ट्रों के प्रमुखों से समय – समय पर भेंट की। जिसका लाभ भारत को मिल सकता है।
इज़रायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू तक भारत का दौरा कर चुके हैं। इज़रायल यहां खारे पाने को पीने योग्य बनाने और तेल व प्राकृतिक गैस के क्षेत्र में निवेश को मंजूरी दे चुका है।
ऐसे में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पाकिस्तान प्रेरित आतंकवाद को समाप्त करने में भारत को काफी मदद मिल सकती है, हालांकि विश्वभर में फैले इस्लामिक आतंकवाद को लेकर कथित तौर पर मुस्लिम राष्ट्र स्वयं बंटे हुए हैं लेकिन बावजूद इसके पीएम मोदी के पिछले दौरों का लाभ भारत को मिल सकता है।
भारत सरकार पुलवामा हमले के बाद प्रारंभिकतौर पर पाकिस्तान के खिलाफ कार्रवाई कर चुकी है और पाकिस्तान से मोस्ट फेवर्ड नेशन का दर्जा वापस लिया जा चुका है। ऐसे में अब भारत और पाकिस्तान भविष्य में एक दूसरे के साथ व्यापार नहीं कर सकेंगे और इस तरह के व्यापार में भारत द्वारा पाकिस्तान का सामान आयात करने पर मिलने वाली छूट तक समाप्त कर दी जाएगी।
हालांकि इस तरह के फैसले से पाकिस्तान के साथ भारत को भी आंशिक नुकसान हो सकता है लेकिन अपने सैनिकों की शहादत का कोई मोल नहीं है।
एमएफएन का दर्जा समाप्त करने से पाकिस्तान, भारत में फल,सीमेंट,पेट्रोलियम उत्पाद, लौह अयस्क, सूखे मेवे, तैयार चमड़ा आदि अन्य सामान नहीं भेज सकेगा। पाकिस्तान को भारत में किए जाने वाले व्यापार से खासा लाभ होता रहा है लेकिन इस तरह के निर्णय के बाद पाकिस्तान को आर्थिक नुकसान झेलना पड़ेगा।
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