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मेहदार:बिहार के अनमोल धरोहर
‘‘500 साल पुरान ई मंदिर तत्कालीन नेपाली राजा महेन्द्र वीर विक्रम सहदेवा के द्वारा बनावल गइल रहे ‘‘
बिहार के पहचान आपन गौरवशाली इतिहास,धार्मिक आ सांस्कृतिक धरोहर से ही बा। पर्यटन के लिहाज से बिहार काफी समृद्ध रहल बा। बाकिर आज भी अइसन कईगो पर्यटन स्थल बाड़ी सन जेकरा बारे में जानकारी के कमी के कारण बहुत कम लोग जान पावेला। हालांकि बिहार सरकार के पर्यटन विभाग पहिले से ज्यादा जागरूक भइल बा आ अब अइसन पर्यटन स्थलन के रख-रखाव आ प्रचार खातिर बहुत काम होता।बिहार के प्राचीन मंदिरन में से बा एगो बाबा महेन्द्रनाथ मंदिर जेकरा के मेहदार के नाम से भी जानल जाला। इहां लंगूर आ तरह-तरह के घण्टीयन के बहुतायत संख्या में मौजूद रहला के कारण भी ई मंदिर हमेशा याद में बनल रहेला। अइसन मानल जाला कि जेकर-जेकर मनोकामना पूरा हो जाला उ इहां घण्टी चढ़ावेला। इहे कारण बा कि मंदिर परिसर में चारो ओर खाली घण्टीए नज़र आवेला। श्रद्धालू आपन श्रद्धानुसार छोट-छोट घण्टी से लेके बड़का-बड़का घण्टा तक बहुत श्रद्धा भावना से दान करेले।मुख्य मंदिर के सामने एगो घण्टाघर के निर्माण कइल गइल बा जहां 5000 से भी ज्यादा छोट-बड़ घण्टा टांगल बा जेकर दृश्य श्रद्धालु के मन मोहे में कवनो कमी ना रखे।सावधानी के बात बा त खाली लंगूर से, महावीर जी के रूप मानल ई लंगूर लो कब केने से आके राउर सामान लूच ली लोग कहल मुश्किल बा।
500 साल पुरान ई मंदिर तत्कालीन नेपाली राजा महेन्द्र वीर विक्रम सहदेवा के द्वारा बनावल गइल रहे।मान्यता बा कि ई मंदिर में वीराजमान भगवान शिव भक्त के रोगमुक्त रखेले। आ इहो कहल जाला कि बाबा महेंनद्रनाथ के दर्शण आ पोखरा में नहइला के बाद पुरान से पुरान कुष्ठ रोग भी ठीक हो जाला। भक्त लोग के आपन-आपन मान्यता के बीच इहो कहानी प्रचलित बा कि एकबार नेपाल राजा बनारस जात रहले,राजा के कुष्ठ रोग रहे।रात में आराम करे खातिर सब लोग जंगल में रूक गइल।रात के भगवान शिव राजा के सपना में दर्शन देके कहले कि एह जंगल में एगों पोखरा बा ओमे स्नान कइला से राउर कुष्ठ रोग ठीक हो जाई।भगवान शिव के आदेशानुसार राजा ओही पोखरा में नहइले त उनकर रोग ठीक हो गइल।अगले दिन भगवान शिव फेर राजा के सपना में दर्शन देके कहनी की पीपल के पेड़ के नीचे ही हमार निवास बा।राजा के आदेश पाके सिपाही लोग पेड़ के नीचे खोदे लागल तब उहां से शिवलिंग प्रकट भईल,पहिले त राजा ओके नेपाल ले जाए के सोंचले बाकि शिव के आदेश पाके ओही स्थान पर स्ािापित कर देहले। ओही जगह राजा महेन्द्र एगो भव्य मंदिर के निर्माण करवले जेकरा के महेन्द्रनाथ के नाम से प्रसिद्धि मिलल।
‘‘मंदिर परिसर से 300 मीटर दूर भगवान विश्वकर्मा के भव्य मंदिर बा।‘‘
बाबा महेन्द्रनाथ के भव्य मंदिर के निर्माण लखोरी ईंट आ सूर्खी-चूना से भइल बा। पत्थर से निर्मित खम्भा पर एगो विशाल गुम्बद बा जवना के उपर सोना के कलश आ त्रिशुल स्ािापित बा। मुख्य गुम्बद के अलावा आठ छोट-छोट गुम्बद स्थापित बा।मंदिर परिसर में दोसर मंदिर के बनावट भी अइसने बा।मुख्य मंदिर में अतिप्राचीन काला पत्थर के शिवलिंग स्थापित बा जेकरा चारो ओर पीत्तल के घेरा बनावल बा। भगवान शिव के अलावा मां पार्वती,भगवान गणेश,भगवान राम,माता सीता आ हनुमान जी के भी मंदिर बा।मंदिर परिसर से 300 मीटर दूर भगवान विश्वकर्मा के भव्य मंदिर बा।मंदिर के उत्तर दिशा में विशाल पोखरा बा जेमे नहाए से राजा महेन्द्र के कुष्ठ रोग ठीक हो गइल रहे। 551 बीघा में फैलल ई विशाल पोखरा के कमलदाह सरोवर कहल जाला।श्रद्धालू इहे पोखरा से जल उठाके शिवलिंग के जलाभिषेक
करावेले।नवम्बर माह में बहुत संख्या में कमल के फूल ई पोखरा में देखे के मिल जाई। एकरा अलावा नवम्बर में साइबेरियन प्रवासी पक्षी के बहुत बड़ संख्या में आगमन होला।ई खुबसुरत पक्षी मार्च तक एहीजा के शोभा बढ़ावेली सन। कमलदाह पोखरा के मान्यता बा कि जे भी ई पोखरा के चक्कर लगा लेवे ला ओकर मनोकामना पूर्ण हो जाला।महाशिवरात्रि के दिन आ सावन के महीना में मेहदार में एगो विशाल मेला लागेला आ भक्तन के भारी जुटान के साथ एकर प्रसिद्धि और बढ़ जाला।
बिहार सरकार के पर्यटन विभाग के तरफ से बहुत सकारात्मक पहल कईल गईल बा।मेहदार मंदिर के जिर्नोद्धार से लेके पोखरा के सफाई आ रख-रखाव तक पर्यटन विभाग द्वारा करावल गईल बा।पोखरा के दोनो तरफ महिला आ पुरूष स्नान घाट बा। पर्यटक आ श्रद्धालु के सुरक्षा के ध्यान में रखते हुए मंदिर परिसर में ही पुलिस पोस्ट भी बा बाकिर सावन के महिना में पुलिस बल के संख्या बढ़ जाला।ईंहा पहुंचल भी बहुत आसान बा,सिवान रेलवे स्टेशन से मात्र 22 किमी. बा,सिवान के सिसवन ढ़ाला से मेहदार खतिर यातायात के कौनो कमी नईखे।इहे कारण बा कि नेपाल से भी श्रद्धालू के इहां तक पहुंचे में कौनो परेशानी ना होखे।अगर सरकार आ स्थानिय लोग के सहयोग आ इच्छाशक्ति एही तरह बरकरार रही त हमनी के आवे वाला पीढ़ी के भी ई धरोहर के दर्शन के सौभाग्य प्राप्त हो जाई।
लेखक:-लव कान्त सिंह
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