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गाँव कि एक कविता..जो कविता कम वास्तविकता ज्यादा है

खांटी भोजपुरिया
खांटी भोजपुरिया
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मेहरारू-

काहे नईख आवत रजऊ हमके बताव
आव चाहे जन आव पईसा पेठाव

मँहगा बाजार बा तेल तरकारी
राहतो त मिलत नईखे कवनो सरकारी
90 रूपे दाल बाटे कईसे पकाईं
छूछहूँ त भात रोजे नाहीं घोटाई

चीनी त मिलते नईखे कतहूँ बजारी में
कईसे लाईं सौदा अब त देत ना उधारी में
घर के गेहूँ सध गईल सध गईल चाऊर हो
अतना में चलत नईखे भेज तनी आऊर हो

बाड़का के पैट फाटल मझीला उघाड़े बा
छोटका के कुछो नईखे खेलत ऊ दुआरे बा
टूटली पलनिया कईसे छवाई
अबकि भादो पहिले रउआ आईं
—————————
मरद-

काहे नईखीं आवत सजनी तहके बताईं
आवे से पहिले तनिका पईसा त जुटाईं

काम त बहुते बाटे रोजे जागाड़ी में
पईसा बाकि मिलत नईखे जात बा उधारी में
करकट में रहत बानी संघें बाड़ें साढू हो
चोखा-रोटी खात बानी मिलत नईखे दारू हो

कुछहूँ बुझात नईखे कईसे बताईं
पईसा नईखे लगे हम कईसे आईं

———-लव कान्त सिंह———

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