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किसान बन्धु

सुनो दोस्तों
सुनो दोस्तों
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किसान बन्धु
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“जय जवान जय किसान”
इस ख़याल में
माना, तुम्हारा आधा हिस्सा है |
पर
हकीकत में
मेरे सहोदर ! तुम कहाँ हो ?
नहीं नहीं, तुम कुछ भी हो सकते हो
पर किसान नहीं |
तुम तो
बाम्हन हो
ठाकुर हो
पाटीदार हो |
यही सच्चाई है, सारे चुनाव इस बात के गवाह है |
इधर
निजी तौर पर तुम्हें देने के लिए
मुआवजे हैं, तमगे हैं, नसीहते हैं,
तुम्हारे पास क्या है ?
“खाप” !!!!!
ऑनर किलिंग से बाहर निकलो,
रास्ता खुले में है |
मारपीट आगजनी में
तुम अपने किस वरदान की परीक्षा लेते हो ?|
माना,
तुम ज़मीन से अपनी बात मनवा लेते हो,
अपनी मांग और इशारे पर
अनाज, फल, सब्जियां
ज़मीन से हाजिर करवा लेते हो |
इसलिए कि
ज़मीन तुम्हारे पसीने से मोहब्बत करती है |
पर किसान बन्धु,
व्यवस्था ज़मीन नहीं होती |

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