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प्रेम
प्रेम को शब्दों में कहने जाएँ तो तय है कि वह कविता बना देता है, समझाने लगेंगें तो कहानी बना देता है और समझना चाहेंगें तो अबूझ तत्वज्ञान (दर्शन/फिलॉसफ़ी ) का मामला हो जाता है,देखने जायेंगे तो तस्वीर और सुनने जायेंगें तो धुन | मैं और मेरे जैसे खोजने की कोशिश करते हैं तो प्रेम विज्ञान बना देता है |
कोई आपको हंसा भी देता है रूला भी देता है तो आप उसके साथ प्रेम में होने जा रहे हैं या हो चुके हैं |
प्रेम में होना वैसे ही है जैसे हवा में होना | हवा ख़त्म तो हम ख़त्म | हवा हमारे लिए इतनी जरूरी होने के बावजूद हम लगातार हवा के प्रति सचेत नहीं होते | ठीक इसी तरह हम सब प्रेम में ही होते हैं प्रेम में इतने घुले मिले कि उसकी छूअन से बेपरवाह |
हमारे हाथ की अंगुली | हमारा अंश | हमारा अवयव | जब कोई दूसरा जो हमें हमारा अपना अंश लगे , हमारा अपना हिस्सा तो हम उससे प्रेम में हैं |
हवा कभी ठंडी कभी गरम लगती है | हवा कभी बयार कभी आंधी कभी झंझावात लगती है |
प्रेम भी कभी ममता कभी दोस्ती कभी आकर्षण कभी न्योछावर होने सा लगता है | हमारे आनंद तथा अवसाद की किसी पर निर्भरता उससे हमारे प्रेम की ख़ास पहचान है |
व्यक्ति अकेलापन सहन नहीं कर सकता | अकेले के पास भी अकेलापन नहीं होता यादें साथी बन जाती हैं | बेइंतहा गुस्सा, बेहद शोक, कठोर फैसला ऐसे कुछ पल हो सकते हैं जब किसी को शायद अकेला होने का मतिभ्रम हो जाए तब वह आपा खो चुका होगा |आपा खोना यानि अकेला होने का मति भ्रम | यह प्रेम के कारण है |
प्रेम मूलत: आपका सबका पर्यावरण है | प्रेम आपके भीतर का वातावरण है | आप मौजूद होते हैं, यह भी होता है, आप लुप्त हो जाते हैं पर यह बना रहता है | आपके न होने पर प्रेम एक आच्छादन एक वितान के रूप में घेर लेता है जो कभी श्रृद्धा कभी विश्वास की तरह दिखाई देता है |
प्रेम खुद कारण है, कोई परिणाम या कोई प्रतिक्रिया नहीं | प्रेम को एक किस्म की भावदशा समझना पास की चीज को दूरबीन से देखना है |एक भाव या भाव दशा में होना सीमित समय के लिए है | प्रेम वातावरण के रूप में स्वयम समय होता है | प्रेम में बाहें हार बन जाती हैं, गले लगना लगाना समर्पण हो जाता है, चुम्बन उत्तेजना नहीं स्वाद देता है, पैर छूना श्रद्धा हो जाता है |
प्रेम एक कलाकार है जिसका काम लगातार “सम्बन्ध” को तय आकार और निश्चित रंगों से मुक्त रखना है | सम्बन्ध बनाम रिश्तें चाहे स्नेह के हों, दोस्ती के, चाहे यौन क्रिया के हों या परोपकार के इतने नए और रंगीन हों जो आधुनिक से आधुनिक सभ्यता और संस्कृति को भरपूर नवीन तथा चित्ताकर्षक लगें , यही चिरंतन सृजन प्रेम का धर्म है |
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