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शिव नहीं डरता प्रलय से ना किसी विषपान से |
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आगे तो बढ़ जरा बस मन में रचे विधान से |
शिव नहीं डरता प्रलय से ना किसी विषपान से |
गर्जना भी प्रार्थना है,
शौर्य स्वयम सर्जना है,
कंठ है कुंठा नहीं है,
तो मनसा ही कर्मणा है,
बदल दे ऋतु अपने वासंती परिधान से |
शिव नहीं डरता प्रलय से ना किसी विषपान से |
गूंजने दे नगर कीर्तन,
ताण्डवी हो सबद नर्तन,
काल के इस भाल पर लिख,
स्वेद मसि से तू परिवर्तन,
प्रारम्भ वचनबद्ध हुआ सुनिश्चित परिणाम से |
शिव नहीं डरता प्रलय से ना किसी विषपान से |
गरीबी की सघन घटा से,
श्रम की भगीरथी छटा से,
मूर्त हो “धारा” धरा पर,
इस संविधान की जटा से,
सुशीरंग का नेह नाता अब देश के अभिमान से |
शिव नहीं डरता प्रलय से ना किसी विषपान से |
(वासंती परिधान= बसन्ती चोला, स्वेद= पसीना, मसि=स्याही,
“धारा”=यहाँ संविधान की धारा(सेक्शन) और गंगा की धारा दोनों से आशय है,संविधान
को शिव माना है | )
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