सुनो दोस्तों
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“दिल्ली मुंबई बंगलुरू ही नहीं देश के पूरे भूगोल के नाम”
सभी
राजधानियों के राजमार्ग
महानगरों के महापथ
गावों की गलियाँ
सारे
आवास निवास प्रवास
समस्त
मठ मंदिर
विवेक बुद्धियाँ
मन आत्माएं
आखेट स्थल हो गए हैं |
लोग
हांका लगाने वालों के जनयूथ में शामिल
फैशन, सौन्दर्य प्रसाधनों, छोटे कपड़ों पर
मचाते हुए हल्ला
अपनी बच्चियों को हांकते हुए
वधस्थलों की ओर |
मैं और भी कतिपय “मैं”
जिनकी
मांस मज्जा ने
लज्जावश
त्याग दिया निज अस्थियों को
उन अस्थियों के हो गये कई एक वज्र
किन हाथों में पहुँच कर समाये
ये व्रजास्त्र ???…???
……………….
पुरानी पीढी गौण है
नई पीढ़ी मौन है
………………………
आओ हम सारे “मैं”
हो जाएँ मानव बम
फट पड़ें
लोगों की
आस्थाओं में
आत्माओं में ||||
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