माँ-बाप अपने बच्चों की शादी कराते हैं. सोचिये अगर बच्चे माँ-बाप की शादी करवायें! पढ़ने में अटपटा लग सकता है लेकिन यह हमारे समाज की एक सच्चाई है. एक ऐसी सच्चाई जो वर्षों से व्यवहार में होने के कारण प्रथा बन गयी. राजस्थान के आबू सड़क स्थित कई आदिवासी बहुल गाँवों में लिव-इन संबंध काफ़ी वर्षों से परम्परा में है. यहाँ का प्रसिद्ध गणगौर मेला उपयुक्त लिव-इन सहयोगी के चुनाव का अवसर मुहैया कराते हैं. दरअसल इस मेले में लड़के-लड़कियाँ मिलते हैं और अपना लिव-इन सहयोगी चुनते हैं. अप्रैल में लगने वाले इस मेले में जीवनसाथी को चुनने के बाद जोड़े अपना गाँव छोड़ देते हैं और कहीं दूर जाकर रहने लगते हैं.
नये स्थान पर ये जोड़े पति-पत्नी की तरह दांपत्य जीवन व्यतीत करते हैं. साथ ही अपने परिवार को ये अपने दांपत्य जीवन की सूचना भिजवा देते हैं. बच्चों के बारे में सूचना मिलने के बाद अगर उनके परिवारवाले शादी के साथ घर-वापसी के लिये तैयार हो जाते हैं तो ये भागे हुए जोड़े वापस आ जाते हैं. लेकिन किसी कारणवश अगर इस शादी को उनके परिवारवालों से स्वीकृति नहीं मिलने पर ये जोड़े लिव-इन संबंध में ही रहकर जीवन गुजारते हैं.
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दांपत्य जीवन के दायित्वों का निर्वाहन करते हुए जब इन जोड़ों के बच्चे शादी के लायक हो जाते हैं तो उनके लिये सहयोगी की ख़ोज शुरू हो जाती है. लेकिन ये बच्चे अपनी शादी से पहले अपने माँ-बाप की शादी करवाते हैं. इस शादी के कारण लिव-इन संबंधों में वर्षों रह चुके जोड़ों को उनका समाज अपना लेता है. इस वजह से वो अपने गाँव वापस जाने को स्वतंत्र हो जाते हैं.
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गाँव के बुजुर्ग इस परम्परा को ‘सिसोदिया वंश’ से जोड़कर देखते हैं. कहा यह भी जाता है कि इस परम्परा को ‘सिसोदिया वंश’ के शासन के समय ‘खींचना प्रथा’ के नाम से जाना जाता था.Next….
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