जमीन पर खाना भारत में खाने के पुराने तरीक़ों में से एक है. जहाँ कुछ लोग इसे पुराना होने के कारण भूल चुके हैं वहीं कुछ लोग अब भी जमीन पर बिछाये आसन पर बैठ कर ही खाना खाते हैं. इस तरीके के विरोधी जहाँ इसे अतार्किक बताते हैं वहीं इसके समर्थक जमीन पर खाने के पक्ष में ये राय रखते हैं:-
पाचन प्रक्रिया को आसान बनाती है
पालथी मारकर बैठने के क्रम में जो मुद्रा बनती है उसे सुखासन कहते हैं. मुँह में कौर डालते वक़्त शरीर थोड़ा आगे झेकता है. मुँह में कौर जाने के बाद शरीर वापस उसी अवस्था में पहुँच जाती है. ऐसा करने से पेट की माँसपेशियाँ सक्रिय रहती है जो भोजन को पचाने में मदद करती है.
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हृदय को मजबूत कर रक्त प्रवाह सुधारती है
खाने के बाद शरीर को उर्जा मिलती है. ऐसे में शरीर में एक गरमाहट फैल जाती है. पाचन प्रक्रिया का एक मुख्य तत्व शरीर में रक्त का प्रवाह है. जमीन पर बैठ कर खाने से हृदय से अन्य अंगों तक रक्त का प्रवाह सुगम हो जाता है.
काबू में रहता है वजन
आसन पर बैठकर खाने से वजन पर काबू रखा जा सकता है. सुखासन की मुद्रा में बैठने से दिमाग शांत रहता है और व्यक्ति का सारा ध्यान खाने पर केंद्रित रहता है. इससे नसों से दिमाग को यह संदेश जाता है कि उसे भोजन की कितनी मात्रा की जरूरत है. भोजन से तृप्तता का एहसास हो जाता है. इस कारण से व्यक्ति जरूरत से ज्यादा नहीं खाता.
जोड़ों को बनाता है लचीला
पद्मासन और सुखासन की मुद्रा में बैठना जोड़ों को अपक्षयी रोगों से बचाने में मदद करती है. इस मुद्रा में बैठने से जोड़ों में चिकनाई आती है जिससे जोड़ों में लचीलापन बना रहता है.Next….
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