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दिल नहीं दिमाग मिलवाता है सच्चे प्यार से !!

फिल्मों में तो अकसर ऐसी कहानियों और हालातों को दर्शाया जाता है जिसमें भावी प्रेमी जोड़ा पहली मुलाकात में ही एक-दूसरे से प्रेम करने लगता है. बस एक बार मिलने या तस्वीर देखने के बाद ही वह विवाह कर आजीवन साथ रहने का निर्णय कर लेता है. इसके अलावा हिंदी फिल्मों की प्रेम कहानियों में तो यह भी समझाया जाता रहा है कि किसी अलौकिक संकेत द्वारा आप अपने मिस्टर राइट या मिस राइट को जान सकते हैं.


जैसा कि ज्यादातर फिल्मी कहानियां काल्पनिक और हकीकत से परे होती हैं, कुछेक को छोड़ दिया जाए तो आम जन मानस ऐसे संकेतों को पूरी तरह निरर्थक ही मानता है. अन्य कहानियों की भांति वह इन्हें भी ज्यादा गंभीरता से नहीं लेता.


perfect coupleलेकिन अगर आप भी उन दर्शकों में से हैं जो ऐसी प्रेम कहानियों और प्रेमी से संबंधित मिलने वाले संकेतों को फिजूल समझते हैं तो हाल ही में हुआ एक शोध और उसके नतीजे आपकी इस मानसिकता को बदल सकते हैं. इसके अलावा वे लोग जो अपने जीवन में किसी खास व्यक्ति के आने का इंतजार कर रहे हैं यह सर्वेक्षण उन्हें उनके मिस्टर या मिस राइट से भी मिलवा सकता है.


अमरीका स्थित कंपनी ब्रेन एंड साइंस द्वारा हुए इस अध्ययन में यह प्रमाणित हुआ है कि जब आपकी मुलाकात अपने पर्फेक्ट पार्टनर से हो जाती है तो आपको इसकी सूचना कोई अलौकिक शक्ति नहीं देती बल्कि स्वयं आपके मस्तिष्क द्वारा आपको प्रदान की जाती है.


ब्रेन डिजायर नामक इस अध्ययन के अंतर्गत वह व्यक्ति जो अपने साथी से जल्द से जल्द मिलने की उम्मीद कर रहा है वह कुछ वैज्ञानिक संकेतों की सहायता से यह जान सकता है कि कौन सा व्यक्ति उसके लिए उपयुक्त रहेगा और सुयोग्य साबित होगा. इसके नतीजे पूरी तरह बाहरी प्रभाव से रहित होंगे.


शोधकर्ताओं ने पाया कि जब व्यक्ति को उनके मिस्टर या मिस राइट से मिलवाया जाता है तो उनके ब्रेन का वह हिस्सा बहुत ज्यादा सक्रिय हो जाता है जो इच्छा और प्रेम जैसी भावनाओं को संचालित करता है. हमारे मस्तिष्क को यह पहले ही पता चल जाता है कि जिस व्यक्ति से आप मिल रहे हैं वह आपको किस तरह प्रभावित कर सकता है. इसीलिए वह उसके विषय में सोचना शुरू कर देता है. जैसे ही वह व्यक्ति मस्तिष्क का ध्यान अपनी ओर केन्द्रित करता है उसी समय उसकी मौजूदगी आपके मस्तिष्क में एक गहरी छाप छोड़ जाती हैं. ऐसा संबंध बनने से पहले या फिर एक-दूसरे से सीधे वार्तालाप हुए बिना भी हो सकता है.


न्यूजवाइज में प्रकाशित इस रिपोर्ट के अनुसार इस शोध से जुड़े वैज्ञानिक और ब्रेन एंड साइंस के मुख्य कार्यकारी अधिकारी राउल बेक का कहना है व्यक्ति मस्तिष्क में होती सक्रियता और ऐसी हलचलों को अगर गंभीरता से लेता है तो वह अपेक्षाकृत एक बेहतर चुनाव कर सकता है और यह चुनाव उसके आगामी जीवन के लिए भी एक सुखद अनुभव बन जाएगा.


भले ही यह अध्ययन विदेशी संस्थान द्वारा विदेशी लोगों को केन्द्र में रखकर किया गया है, लेकिन जब सभी मनुष्यों की शारीरिक संरचना और आंतरिक गतिविधियां समान होती हैं तो ऐसे में सिर्फ इस शोध का विदेश में होना कोई मायने नहीं रखता. हालांकि इस अध्ययन पर पूरी तरह विश्वास करना व्यवहारिक नहीं प्रतीत होता लेकिन फिर भी एक कोशिश तो की ही जा सकती है. जिस विषय में आप दिल से कोई निर्णय नहीं ले पा रहे हैं क्या पता आपका मस्तिष्क उस समस्या को हल कर दे.


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