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ग्रामीण लोग ही समझते हैं प्रेम का महत्व !!

वर्तमान समय के मद्देनजर यह कहना गलत नहीं होगा कि आधुनिकता से जूझ रहे समाजों में प्रेम और आपसी भावनाओं का स्थान न्यूनतम रह गया है. प्राय: देखा जाता है कि स्वार्थ और महत्वाकांक्षाओं से ओत-प्रोत हमारे युवाओं के लिए समर्पण और प्रतिबद्धता जैसी अवधारणाएं कुछ ज्यादा महत्व नहीं रखतीं. बड़े शहरों में तो हालात और भी ज्यादा खराब हैं, क्योंकि यहां प्रेम के स्थान पर अफेयर जैसे संबंधों का चलन, जो कभी भी अपनी सुविधानुसार बनाए और समाप्त किए जा सकते हैं, जोरों पर हैं. लेकिन ऐसे बदलते हालातों में भी आप अपने जीवन में एक ऐसे व्यक्ति के आने की उम्मीद लगाए बैठे हैं जो सिर्फ आपसे ही प्रेम करता हो और आपके प्रति पूर्ण समर्पित हो तो आपको शहरों की अपेक्षा ग्रामीण इलाकों का रुख करना चाहिए. क्योंकि शहरी क्षेत्रों में जहां प्रेम एक खेल बन गया है वहीं ग्रामीण इलाकों से जुड़े लोग आज भी प्रेम रूपी संबंध को निभाने में विश्वास रखते हैं.


coupleलंदन के एक टी.वी. चैनल द्वारा संपन्न एक अध्ययन में यह बात प्रमाणित हुई है कि ग्रामीण और देहाती इलाकों से संबंध रखने वाले लोग आज भी प्रेम को निभाते हैं जबकि शहरी लोग संबंध को तोड़ते-बनाते रहते हैं.


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सर्वेक्षण में यह स्थापित किया गया है कि लगभग 77 प्रतिशत ग्रामीण लोग अपने प्रेमी के साथ ही विवाह करते हैं जबकि शहरी क्षेत्रों में यह प्रतिशत केवल 48 प्रतिशत रहा. इतना ही नहीं ग्रामीण इलाकों में 61 प्रतिशत जोड़े कई दशकों से अपने वैवाहिक संबंध का निर्वाह कर रहे थे जबकि शहरी क्षेत्रों में ऐसे लोगों का प्रतिशत केवल 21 रहा. सर्वेक्षण की अन्य स्थापना के अनुसार ग्रामीण इलाकों में रहने वाले लगभग 53 प्रतिशत लोग अपने साथी से दिन में एक बार अपने प्रेम का इजहार करते हैं जबकि मात्र 23 प्रतिशत शहरी ही अपने साथी को अपनी भावनाएं बताने का समय निकाल पाते हैं.


शोधकर्ताओं का कहना है कि ग्रामीण इलाकों में संबंधों के स्थायी रहने की संभावना इसीलिए अधिक होती है क्योंकि गांव या छोटे शहरों के लोग अपने साथी के प्रति समर्पण और प्रतिबद्धता के मूल्य को बखूबी समझते हैं. शहरी क्षेत्र में रहने वाले विवाहित जोड़े अपने साथी के साथ पर्याप्त समय नहीं बिताते इसीलिए वह शारीरिक संबंधों के मामले में भी साथी से संतुष्ट नहीं रहते, जबकि ग्रामीण इलाकों में ऐसे लोगों की संख्या बेहद कम देखी गई.


लगभग 2000 वयस्कों को केन्द्र में रखकर किए गए इस अध्ययन में यह भी स्थापित किया गया है कि शहरी क्षेत्र के लोग जरूरत और अवसर मिलने पर अपने साथी को धोखा दे सकते हैं लेकिन ग्रामीण इलाकों के लोगों में इसकी संभावना बेहद रहती है.


डेली मेल में प्रकाशित इस रिपोर्ट के अनुसार संबंध विशेषज्ञ जेनी ट्रेंट हुग का कहना है कि शहरी इलाकों में रहने वाले लोग ग्रामीण लोगों से ज्यादा तनावग्रस्त और परेशान रहते हैं. ग्रामीण लोगों के जीवन में यह ठहराव और स्थिरता उन्हें अपने संबंध को निभाने के लिए और अधिक प्रेरित करती है. इसके अलावा यह भी देखा गया है कि ग्रामीण इलाकों में रहने वाले लोग जब अपने साथी के साथ बाहर जाते हैं तो वह ज्यादा खर्चा ना कर के भी अच्छा समय बिताते हैं जबकि शहरी लोग पैसा खर्च करने को ज्यादा तरजीह देते हैं. 34 प्रतिशत शहरी लोगों ने यह बात स्वीकार की है कि साथी के पास पैसा होना बेहद जरूरी है जबकि मात्र 11% ग्रामीण ही इस बात से इतेफाक रखते हैं.


उपरोक्त अध्ययन को अगर हम भारतीय परिदृश्य के अनुसार देखें तो हम इस बात को नजरअंदाज नहीं कर सकते कि शहरी लोग अब प्रेम संबंध के महत्व को उतनी अहमियत नहीं देते जितनी पहले कभी दी जाती थी. युवाओं की बात करें तो उनके लिए प्रेम रूपी संबंध केवल अपनी स्वार्थपूर्ति का एक साधन भर रह गए हैं. वह इनका उपयोग केवल अपनी इच्छानुसार करते हैं. ऐसे संबंध में गंभीरता का भाव कहीं भी नहीं होता इसीलिए विवाह तक पहुंचने की संभावना तो समाप्त ही हो जाती है. आधुनिकता को पूरी तरह स्वीकार कर चुके शहरी युवा भावनात्मक संबंधों के मोल को नकार चुके हैं इसीलिए भारत के शहरों में भी प्रतिदिन प्रेम संबंधों का मखौल उड़ाया जाता है. वहीं दूसरी ओर अगर हम ग्रामीण लोगों की बात करें तो भारत के ग्रामीण इलाके बहुत हद तक कट्टर रुढ़िवादी हैं जो विवाह से पहले किसी महिला-पुरुष के बीच संबंध को स्वीकार नहीं कर सकते. इसीलिए वहां प्रेम विवाह की संख्या बेहद न्यूनतम है. हां, यह बात और है कि ग्रामीण लोग अपने विवाहिक संबंध को निभाने की पूरी-पूरी कोशिश करते हैं.


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