हम दो हमारे दो का नारा आजकल बहुत लोकप्रिय हो रहा है. प्राय: हर दंपत्ति दो बच्चों के बाद अपने परिवार को पूरा मान लेता है. वैसे सही भी है, महंगाई इतनी बढ़ चुकी है कि दो से ज्यादा बच्चों का पालन करना तो वैसे भी काफी मुश्किल हो चला है. तभी तो लोग दो के भी बजाय एक ही बच्चे को प्राथमिकता देने लगे हैं. लेकिन अगर हालिया अध्ययन पर नजर डालें तो जिन बच्चों के एक या दो भाई-बहन होते हैं उनके परिवार में तलाक होने की संभावना ज्यादा रहती है.
हो सकता है आपको हमारी ये बातें बेमानी लगे लेकिन ओहिओ स्टेट यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं का कहना है कि वैसे तो भाई-बहनों की संख्या का सीधे तौर पर तो तलाक या परिवार विघटन से कुछ भी लेना-देना नहीं है. लेकिन वे बच्चे जिनका या तो कोई सगा भाई-बहन नहीं है या फिर एक है, उनके विवाहित जीवन के खुशहाल होने की संभावना कम ही रहती है.
डोग डाउनी, इस अध्ययन के मुख्य शोधकर्ता और यूनिवर्सिटी के सामाजिक शास्त्र विषय के प्रोफेसर का कहना है कि बड़े परिवारों की तुलना में छोटे परिवारों के बच्चों, जिनके सगे भाई बहन एक या फिर नहीं होते, के आगे चलकर तलाक लेने की आशंका बढ़ जाती है.
डोग का कहना है कि जब आपके अपने भाई-बहन होते हैं तो आप आपसी और भावनात्मक संबंधों के महत्व को समझते हैं. आप जब इनकी अहमियत समझने लगते हैं तो यह आगामी जीवन में भी काम आता है. साथ रहना, एक-दूसरे के साथ मेलजोल बढ़ाना आदि जैसी चीजें ज्ब बच्चा बचपन में ही सीख जाता है तो विवाह के पश्चात किसी के साथ सामंजस्य बैठाने में भी उन्हें परेशानी का सामना नहीं करना पड़ता.
वर्ष 1972 से 2012 के बीच अमेरिका के करीब 57,000 वयस्कों पर हुए इस अध्ययन के परिणामों के अनुसार यह कहा जा रहा है कि ज्यादा भाई-बहन होने की वजह से आपको तलाक से बचने की एक एक्स्ट्रा सुरक्षा मिल जाती है.
उपरोक्त अध्ययन को अगर भारतीय परिदृश्य के अनुसार देखा जाए तो इसके परिणामों को बहुत हद तक उपयुक्त कहा जा सकता है. हालांकि आजकल ना तो यहां संयुक्त परिवारों का चलन बाकी रह गया है और ना ही दो से ज्यादा बच्चे ही किसी परिवार में देखे जाते हैं लेकिन फिर भी परिवारिक जनों के साथ रहने के कारण एक दूसरे के साथ समय बिताने, उन्हें समझने, खुशहाल रहने और कुछ समझौते करने की वजह से जाहिर तौर पर अपने जीवनसाथी के साथ सामंजस्य बैठा पाना आसान हो जाता है.
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