जब हम परेशानी में होते हैं या फिर किसी दुविधा में होते हैं तो सबसे पहले हम किस को याद करते हैं? शायद भगवान को और शायद मां (Mothers) को भी. मां हमें जन्म देती ही है साथ ही हमें इंसान बनाने में सबसे ज्यादा हाथ उसी का होता है. और शायद यही वजह है कि लोग मां को भगवान (God) के समान मानते हैं.
मां को भगवान समझना तो समझ में आता है पर ऐसा क्यूं होता है कि हम मुसीबत के समय या जब अधिक प्रेम करने की बात आती है तो पिता (Father) को भुला देते हैं.
अकसर पिता की छवि एक कठोर हृदय वाले इंसान की होती है. समाज (Society) शुरु से ही इस छवि को बल देने में लगा है. ऐसे में कई बार कुछ पिता इस बेड़ी को तोड़ भी देते हैं लेकिन प्रायः पिता बच्चों के प्रति अपने प्यार को अपने तक ही सीमित रखते हैं और उसे दर्शाने में विश्वास नहीं करते. उनके लिए अपने बच्चों को सही राह पर चलाना ही मुख्य मकसद होता है.
अक्सर हम देखते हैं कि मांएं अपने बच्चों के प्रति अपने स्नेह को दर्शाती हैं, उनके अलग होने पर अपने आंसुओं पर नियंत्रण नहीं रखती हैं. सब मां को ही स्नेह और ममता (Love) की प्रतिमूर्ति मानते हैं. मां के बिना बच्चों को प्यार नहीं मिलता सबका यही सोचना होता है.
पर क्या बच्चों से प्यार सिर्फ मांएं ही करती हैं, पिता नहीं? एक पिता तो मौन रहकर अपने बच्चों को प्रेम करता है और उनके लिए बलिदान (Sacrifice) करता है तब भी उसे कठोर हृदय का मानकर अलग क्यूं कर दिया जाता है. एक पिता जब अपने बच्चे को किसी गलती पर थप्पड़ मारता है तो दरअसल वह उसे गलत रास्ते पर जाने से रोकता है. पर बच्चे को ऐसा लगता है कि पिता उनसे प्यार नहीं करते इसलिए उन पर हाथ उठा देते हैं.
ऐसा इसलिए होता है क्यूंकि पुरुष अपनी भावनाओं को जल्दी प्रदर्शित नहीं करते और अपने बच्चों के बीच वह एक मर्यादित संबंध स्थापित रखना चाहते हैं जिससे बच्चे उनकी आज्ञा का पालन करें और इसी संबंध को बनाते बनाते अक्सर पिता को कठोर मान लिया जाता है. कहते हैं कि दवा और अच्छे वचन कड़वे तो होते हैं पर अगर दोनों को सही तरह से लिया जाए तो बेहद फायदेमंद भी होते हैं.
और ऐसा भी नहीं है कि पिता प्यार दर्शाना नहीं जानते. वह माता से ज्यादा अपने प्यार और स्नेह को दर्शा सकते हैं लेकिन रोजी-रोटी कमाने की दौड़-धूप और बच्चों का जीवन संजोने के सपने के बीच वह प्यार कहीं दिख नहीं पाता.
आज हर क्षेत्र में नारी को आगे बढ़ाने की बात की जा रही है पर इसी आपाधापी में पिता को हासिए पर रखा जाने लगा है. यह बर्ताव जल्दी बदलने तो नहीं वाला पर अगर हम निजी तौर पर इस बात को समझ सकें कि पिता भी माता के समान ही हमें प्यार करते हैं तो समाज और भी सुंदर हो जाएगा.
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