वर्तमान सामाजिक परिस्थितियों के मद्देनजर यह कहा जा सकता है कि जिन महिलाओं को पहले समाज में अबला और पराश्रित की उपाधि दी जाती थी आज उनमें भी आर्थिक स्वावलंबन की चाह विस्तृत होने लगी है. परिणामस्वरूप कुछ समय पहले तक जिनकी दुनियां परिवार और घर की चारदीवारी तक ही सीमित थी, आज वह घर से बाहर निकल व्यवसायिक क्षेत्र में भी अपनी विशिष्ट उपस्थिति दर्ज करा रही हैं. नि:संदेह महिलाओं के परिमार्जित होते इन हालातों के लिए समाज की बदलती विचारधारा का भी महत्वपूर्ण योगदान रहा है.
लेकिन क्या वास्तविक हालात हमारी इस मानसिकता के साथ मेल खाते हैं?
अगर आप भी ऐसे ही किसी भ्रम में हैं कि महिलाओं को जीवन के हर क्षेत्र में पुरुषों के साथ बराबरी का अधिकार मिल गया है, तो हाल ही में हुआ एक सर्वेक्षण आपकी इन भ्रांतियों को दूर करने में सहायक सिद्ध हो सकता है.
नतीजों पर नजर डालें तो यह स्पष्ट हो जाता है कि भले ही महिलाएं अपनी काबिलियत साबित करने में पुरुषों से कहीं अधिक आगे हों लेकिन जब नेतृत्व की बात आती है तो महिलाओं के नाम पर गौर तक नहीं किया जाता!!
नार्थवेस्टर्न विश्वविद्यालय द्वारा कराए गए इस शोध में आए नतीजों की मानें तो यह स्पष्ट हो जाता है कि पारिवारिक क्षेत्र हो या फिर सामाजिक, महिलाओं के नेतृत्व को कतई पसंद नहीं किया जाता. इसके विपरीत पुरुषों की नेतृत्व क्षमता को हमारा समाज नैसर्गिक मानता है और उन्हें किसी भी कसौटी का सामना नहीं करना पड़ता.
यद्यपि यह शोध एक विदेशी संस्थान द्वारा कराया गया है इसीलिए इसके परिणामों को भारतीय परिस्थितियों के साथ जोड़कर देखना न्यायसंगत नहीं हो सकता. भारत के संदर्भ में बात करें तो भले ही अपने मौलिक रूप में यह एक पुरुष समाज हो और महिलाओं को अपने अधीन रखना पुरुष अपना स्वाभाविक अधिकार मानते हों. लेकिन एक सच यह भी है कि समय-समय पर भारतीय महिलाओं ने अपनी बेजोड़ नेतृत्व क्षमता के कई उदाहरण समाज के सामने प्रस्तुत किए हैं, जिन पर कोई सवाल नहीं उठाया जा सकता. नेतृत्व का अधिकार आधुनिक युग की देन नहीं है. यह तो भारतीय नारी की वर्षों पुरानी क्षमता है. हमारा इतिहास स्वयं इस बात का गवाह है कि जब भी महिलाओं ने नेतृत्व की बागड़ोर अपने हाथों में ली है, विजयश्री जरूर प्राप्त हुई है. कई ऐसी वीरांगनाओं का जन्म भारत में ही हुआ है जिन्हें आज भी विश्व पटल पर एक मजबूत हस्ती के रूप में याद किया जाता है.
स्वतंत्रता संग्राम में भी महिला और पुरुषों में नेतृत्व को लेकर कोई भेदभाव नहीं किया. महिलाओं ने अपनी बराबरी की हिस्सेदारी दी. वहीं आजादी के बाद भी महिलाओं ने अपने नेतृत्व के सफल परिणाम प्रस्तुत किए हैं. इन्दिरा गांधी भी एक भारतीय महिला ही थीं जिन्होंने अकेले अपने दम पर देश की एक बड़ी राजनैतिक पार्टी को संभाला और उसका उचित नेतृत्व भी किया. वर्तमान भारत के परिदृश्य पर गौर करें तो राष्ट्रपति, जिसे देश का प्रथम नागरिक बनने का सम्मान प्राप्त है, वह भी एक महिला ही हैं. इसके अलावा चार राज्यों की मुख्यमंत्री और एक बड़ी राजनैतिक पार्टी की मुखिया भी महिलाएं ही हैं.
इतना ही नहीं विभिन्न क्षेत्रों से जुड़े ऐसे अनेक उदाहरण हैं जो महिलाओं की नेतृत्व क्षमता का बखान स्वयं कर देते हैं. भले ही पाश्चात्य देश भारत की तुलना में कहीं अधिक प्रगति कर चुके हों लेकिन ऐसे शोध उनकी प्रगति की हकीकत स्वत: बयां कर देते हैं. भारतीय परिस्थितियां हर स्वरूप में विदेशों से भिन्न ही पाई गई हैं. ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि महिलाएं जिन्हें आज भी विदेशों में नेतृत्व के विषय में कोई विशेष स्थान नहीं दिया जाता वहीं काफी पहले ही भारत की महिलाएं एक सफल नेत्री के रूप में अपनी योग्यता का प्रमाण दे चुकी हैं.
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