भारत जैसे परंपरावादी समाज के संदर्भ में किसी ना किसी रूप में यह सवाल हमारे सामने आ ही जाता है कि क्या एक लड़का और लड़की केवल दोस्त हो सकते हैं? विशेषकर आज के आधुनिक युग में इस सवाल के बार-बार उठने के पीछे सबसे बड़ा कारण यह है कि महिला और पुरुष के बीच तथाकथित दोस्ती से जुड़े ऐसे कई उदाहरण हमारे सामने हैं जो यह प्रदर्शित करते हैं कि हमारे युवा दोस्ती की आड़ में सिर्फ अपनी स्वार्थ सिद्धि को ही महत्व देते हैं. नियमों में आबद्ध भारतीय समाज किसी भी लड़के और लड़की में मेल-जोल बर्दाश्त नहीं करता जब तक कि उनके बीच के संबंध को सामाजिक और पारिवारिक मान्यता ना मिल चुकी हो. ऐसे हालातों में वह कैसे उनके बीच दोस्ती के रिश्ते पर अपनी स्वीकृति दे सकता है.
हमारी फिल्मों में ऐसा ही दर्शाया जाता है कि खुद को एक-दूसरे का अच्छा दोस्त और शुभचिंतक मानने वाले लोगों में भी एक पड़ाव पर आकर पारस्परिक आकर्षण का विकास होने लगता है. कभी-कभार यह आकर्षण थोड़े समय के लिए तो कभी साथ रहते-रहते प्यार में तब्दील हो जाता है. ऐसी परिस्थितियां केवल फिल्मों में ही नहीं हकीकत में भी देखी जा सकती हैं. स्थिति चिंतनीय तब बन जाती है जब वे तथाकथित दोस्त खुद को एक-दूसरे के प्रति शारीरिक आकर्षण महसूस करने लगते हैं जिसके परिणामस्वरूप वह अपने संबंध की सारी सीमाएं लांघ जाते हैं. और अगर परिस्थितिवश वह अपने संबंधों को सही मुकाम तक नहीं पहुंचा पाते तो वे दोस्ती को ही सुरक्षित विकल्प मान कर चलते हैं. कितनी महिलाएं ऐसी हैं जो अपने ही दोस्तों की हैवानियत का शिकार हो जाती हैं. वे दोस्त जिन पर वे अत्याधिक विश्वास करती हैं, वो ही उनके आत्म-सम्मान को चकनाचूर कर देते हैं.
यही कारण है कि इनके संबंध को सामाजिक मान्यता मिलना तो दूर की बात है जब कोई सुनता भी है कि कोई लड़का और लड़की सिर्फ दोस्त हैं तो उनका मजाक बनाया जाता है. ऐसा नहीं है कि सभी दोस्त ऐसे ही होते हैं या कभी कोई लड़का और लड़की दोस्त हो ही नहीं सकते. लेकिन वर्तमान परिदृश्य ही ऐसा बन पड़ा है कि किसी युवक और युवती की दोस्ती को समझना काफी मुश्किल हो गया है.
हमारे रुढ़िवादी समाज की तो बात ही छोड़िए अगर लोगों के पारिवारिक और वैवाहिक जीवन में झांक कर देखा जाए तो यह स्पष्ट हो जाता है कि आजकल की युवा पीढ़ी जो खुद को मॉडर्न और ब्रॉड माइंडेड समझती है, वह भी अपने प्रेमी या जीवन साथी के विपरीत सेक्स के लोगों के साथ दोस्ती सहन नहीं कर सकती. इस दोस्ती की वजह से पति-पत्नी के रिश्ते एक फिल्मी कहानी की तरह उलझ जाते हैं. अंतर बस इतना रह जाता है कि फिल्मी कहानी पहले से ही निर्धारित होती है और असल जिंदगी की घटनाएं और हालात पूरी तरह अप्रत्याशित होते हैं. पति-पत्नी के बीच दोस्ती को लेकर उठती समस्याओं का सबसे बड़ा कारण है कि अकसर लोग प्यार और दोस्ती में अंतर नहीं कर पाते. जिसकी वजह से वैवाहिक संबंध टूटने के कगार तक पहुंच जाते हैं. आधुनिकता की बयार के तहत जैसे-जैसे समाज में खुलापन बढ़ रहा है, वैसे-वैसे ही हम एक-दूसरे की भावनाओं को समझने और उन्हें आंकने में अक्षम होते जा रहे हैं. दोस्ती और प्यार दो अलग-अलग बातें हैं. हालांकि दोनों ही व्यक्ति के जीवन में बहुत ज्यादा महत्व रखते हैं लेकिन विवाह के बाद लोगों की प्राथमिकताएं और उनकी संबंधों के प्रति दृष्टिकोण बहुत हद तक परिवर्तित हो जाते हैं. अगर आपका बेस्ट फ्रेंड आपके जीवन में बहुत ज्यादा महत्व रखता है तो संभवत: आपके जीवनसाथी को इस बात से परेशानी होगी.
इसीलिए अपने वैवाहिक जीवन को खुशहाल बनाए रखने के लिए जरूरी है कि हम प्यार और दोस्ती में अंतर करना सीखें. जरूरी नहीं है कि जिसके साथ आप खुद को सहज महसूस करते हैं या जिनके साथ समय बिताना आपको अच्छा लगता है उनसे प्यार भी हो जाए. हो सकता इसके पीछे आप दोनों की परिपक्व आपसी समझ हो, जिसकी वजह से आप एक-दूसरे को अच्छे से समझते हों. अपने जीवन को जटिल या सुलझा हुआ बनाना पूर्णत: आपके ही ऊपर निर्भर है. अगर आप चाहते हैं कि आपका वैवाहिक जीवन सुखमय बना रहे तो अपनी प्रमुखताओं और संबंधों को सीमित करना और उनके बीच अंतर करना सीखें.
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