आमतौर पर यह माना जाता है कि “व्यक्ति का स्वभाव कैसा होगा?” यह उसके आसपास के वातावरण और पारिवारिक परिस्थितियों पर निर्भर करता है. अर्थात अगर कोई व्यक्ति खुशहाल परिस्थितियों में जीवन व्यतीत कर रहा है तो बहुत हद तक संभव है कि वो हंसमुख स्वभाव वाला होगा, वहीं अगर उसके परिवार में मनमुटाव चलता रहता है या उसके दोस्त या निकटतम लोग गुस्सैल हैं तो उसके व्यक्तित्व पर भी इन सब कारकों का बहुत गहरा प्रभाव पड़ता है.
लेकिन हमेशा की तरह पाश्चात्य देशों ने आपकी इस मानसिकता को भी बदलने का प्रयास किया है. उन्होंने यह साबित कर दिया है कि लंबे से चली आ रही आपकी यह मानसिकता बहुत ज्यादा तथ्यात्मक नहीं है.
लंदन स्थित एसेक्स यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि व्यक्ति के स्वभाव का निर्धारण बाहरी परिस्थितियों से नहीं बल्कि अंदरूनी बुनावट के कारण होता है. इसीलिए उसके जन्म से पहले ही यह तय हो जाता है कि वह हंसमुख स्वभाव का होगा या फिर गुस्सैल और अक्खड़.
एक्सप्रेस डॉट को डॉट यूके की रिपोर्ट के अनुसार वैज्ञानिकों ने इस तथ्य से संबंधित साक्ष्य ढूंढ निकाले हैं कि हमारे डीएनए का एक छोटा सा हिस्सा ही हमें स्वाभाविक रूप से खुश या दुखी रखता है. उनका कहना है कि व्यक्ति का मूड निर्धारित करने में उनके जीन की अहम भूमिका होती है. इस अनुसंधान से जुड़े वैज्ञानिकों ने तो मनुष्य शरीर के अंदर विद्यमान जीनों की संख्या में से उस जीन की पहचान कर ली है, जो निर्धारित करता है कि व्यक्ति का स्वभाव कैसा होगा.
100 लोगों के डीएनए की जांच करते समय वैज्ञानिकों ने इस बात पर गौर किया कि लोगों के जीन किस तरह शरीर में मूड रसायन सेरोटोनिन को फैलाते हैं. जिन लोगों में जीन के छोटे प्रकार थे, उनमें सकारात्मक और नकारात्मक दोनों प्रतिक्रियाएं पाई गईं. लेकिन जिनमें लम्बे जीन थे उन्होंने बेहद न्यूनतम प्रक्रिया दी.
मुख्य शोधकर्ता एलेन फॉक्स का कहना है कि जिन लोगों के जीन बड़े होते हैं, वह अनुकूल परिस्थितियों में बेहतर साबित हो सकते हैं, लेकिन वह चुनौतियों से जल्दी ही घबरा जाते हैं और अनुभवों से ज्यादा कुछ नहीं सीख पाते.
मनुष्यों को जीन उनके जैविक माता-पिता द्वारा प्राप्त होते हैं. ऐसे में स्वाभाविक है कि माता-पिता का स्वभाव उन्हें बहुत हद तक प्रभावित करता है.
लेकिन हम इस अध्ययन को कोई नई खोज मान लें इससे पहले हमें भारतीय परिवारों की मान्यताओं पर भी ध्यान जरूर देना चाहिए. अकसर देखा जाता है कि व्यक्ति के स्वभाव को माता-पिता या फिर परिवार के नजदीकी संबंधियों जैसे दादा-दादी, नाना-नानी के साथ मिला कर अवश्य देखा जाता है. क्योंकि हम यह मानते हैं कि व्यक्ति और उसके पारिवारजनों के स्वभाव में बहुत अधिक समानता होती है. ऐसा ना सिर्फ इसीलिए कि वह उनके साथ ज्यादा समय बिताता है, बल्कि उसके पैदायशी गुण भी इसी पर आधारित होते हैं. इस आधार पर इस शोध के परिणाम कम से कम भारतीय लोगों को हैरान करने वाले नहीं हैं. हां, वैज्ञानिकों ने इस जीन अध्ययन के बाद एक और उम्मीद जगाई है कि व्यक्ति को तनाव तथा सदमे से उबारने के जीन द्वारा उसके उपचार में अत्याधिक सहायता मिलेगी. अगर ऐसा होता है तो नि:संदेह यह अपनी तरह का नया और हैरानी पैदा कर देने वाला शोध हो सकता है.
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