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संस्कारों के विरुद्ध है महिलाओं का ज्यादा बोलना

friendly girlsवैश्विक पटल पर भारत को सांस्कृतिक गुरू का स्थान प्राप्त है. विदेशों में भी भारतीय संस्कृति, परंपराएं और मान्यताएं आज भी प्रमुखता के साथ अपनाई और स्वीकार की जाती हैं. भारतीय नागरिक इसी सम्मानित परंपरा और संस्कृति के वाहक माने जाते हैं. यही कारण है कि समय बीतने और आधुनिकता की ओर अग्रसर होने के बावजूद आज भी भारतीय नागरिकों से शालीनता और सहजता की उम्मीद की जाती है. महिला हो या पुरुष दोनों से ही समान रूप से जिम्मेदार और परिपक्व व्यवहार रखने की आशा की जाती है. उल्लेखनीय है कि भारतीय परिवेश में महिलाओं को परिवार और समाज के मान-सम्मान का प्रतीक माना जाता है. इसीलिए उन पर सही मार्ग पर चलने और हर कदम पर सावधानी बरतने की अपेक्षा की जाती है. शास्त्रों में भी महिलाओं के लिए निम्नलिखित कुछ नियम और कानून निर्धारित किए गए हैं, जिनका अनुसरण कर वह समाज में अपनी और परिवार की प्रतिष्ठा बरकरार रख सकती हैं.


  • महिलाओं को संयम में रहकर बोलना चाहिए. उन्हें ना तो जरूरत से ज्यादा बात करनी चाहिए और ना ही चुप रहना चाहिए.
  • दो लोग अगर बात कर रहे हैं तो महिलाओं को कभी भी उन दोनों के बीच में बात नहीं करनी चाहिए. अगर कोई उनसे कुछ बोलने को कहे तभी उन्हें अपनी बात कहनी चाहिए.
  • बिना सोचे-समझे या विचार किए कुछ भी नहीं कहना चाहिए.
  • बोलने में पहल या शीघ्रता नहीं करनी चाहिए.
  • बेमतलब कुछ भी नहीं कहना या करना चाहिए.
  • ऐसी कोई बात नहीं करनी चाहिए जिससे मतभेद या लोगों के बीच मनमुटाव के हालात विकसित हों.
  • धर्म के विरुद्ध या उसके विपरीत ना तो बात करनी चाहिए और ना ही कुछ कहना चाहिए.
  • ऐसा कुछ भी नहीं कहना चाहिए जो दूसरों को बुरा लगे.
  • किसी को ना तो ताना नहीं मारना चाहिए और ना ही उनका मजाक उड़ाना चाहिए.
  • अनावश्यक या जरूरत से ज्यादा हंसना नहीं चाहिए.
  • एक सीमा से ज्यादा किसी से भी निकटता नहीं रखनी चाहिए.
  • दूसरों की बुराई नहीं करनी चाहिए.
  • हमेशा सच और कोमल बात करनी चाहिए.
  • महिलाओं को कभी भी जिद नहीं करनी चाहिए.
  • अपने मुख से कभी अपनी प्रशंसा नहीं करनी चाहिए.

हालांकि उपरोक्त बिंदु एक आदर्श भारतीय महिला की कल्पना को सार्थक करते हैं, लेकिन फिर भी अब समय बहुत ज्यादा परिवर्तित हो गया है. सिर्फ शालीनता में रहने और प्रतिष्ठा बचाए रखने के लिए अपने हितों को नजरअंदाज करना जरूरी नहीं समझा जाता. पहले के समय में महिलाएं हमेशा परिवार की जरूरतों और उनके मान-सम्मान के लिए अपनी अपेक्षाओं और जरूरतों को नकारती थीं. उन्हें अपने अधिकारों या हितों से कोई वास्ता नहीं था. लेकिन आज की महिलाएं पढ़ी-लिखी और आत्म-निर्भर हैं. वह अपने कर्तव्यों के साथ अपने अधिकारों के विषय में भी सजग हैं. लेकिन अधिकारों का यह आशय नहीं है कि बिना किसी की परवाह किए सिर्फ अपने विषय में सोचकर ही कोई निर्णय किया जाए. महिलाएं स्वभाव से कोमल और समर्पित होती हैं. अमूमन उनसे ऐसे ही स्वभाव की उम्मीद भी की जाती है.

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