वैश्विक पटल पर भारत को सांस्कृतिक गुरू का स्थान प्राप्त है. विदेशों में भी भारतीय संस्कृति, परंपराएं और मान्यताएं आज भी प्रमुखता के साथ अपनाई और स्वीकार की जाती हैं. भारतीय नागरिक इसी सम्मानित परंपरा और संस्कृति के वाहक माने जाते हैं. यही कारण है कि समय बीतने और आधुनिकता की ओर अग्रसर होने के बावजूद आज भी भारतीय नागरिकों से शालीनता और सहजता की उम्मीद की जाती है. महिला हो या पुरुष दोनों से ही समान रूप से जिम्मेदार और परिपक्व व्यवहार रखने की आशा की जाती है. उल्लेखनीय है कि भारतीय परिवेश में महिलाओं को परिवार और समाज के मान-सम्मान का प्रतीक माना जाता है. इसीलिए उन पर सही मार्ग पर चलने और हर कदम पर सावधानी बरतने की अपेक्षा की जाती है. शास्त्रों में भी महिलाओं के लिए निम्नलिखित कुछ नियम और कानून निर्धारित किए गए हैं, जिनका अनुसरण कर वह समाज में अपनी और परिवार की प्रतिष्ठा बरकरार रख सकती हैं.
हालांकि उपरोक्त बिंदु एक आदर्श भारतीय महिला की कल्पना को सार्थक करते हैं, लेकिन फिर भी अब समय बहुत ज्यादा परिवर्तित हो गया है. सिर्फ शालीनता में रहने और प्रतिष्ठा बचाए रखने के लिए अपने हितों को नजरअंदाज करना जरूरी नहीं समझा जाता. पहले के समय में महिलाएं हमेशा परिवार की जरूरतों और उनके मान-सम्मान के लिए अपनी अपेक्षाओं और जरूरतों को नकारती थीं. उन्हें अपने अधिकारों या हितों से कोई वास्ता नहीं था. लेकिन आज की महिलाएं पढ़ी-लिखी और आत्म-निर्भर हैं. वह अपने कर्तव्यों के साथ अपने अधिकारों के विषय में भी सजग हैं. लेकिन अधिकारों का यह आशय नहीं है कि बिना किसी की परवाह किए सिर्फ अपने विषय में सोचकर ही कोई निर्णय किया जाए. महिलाएं स्वभाव से कोमल और समर्पित होती हैं. अमूमन उनसे ऐसे ही स्वभाव की उम्मीद भी की जाती है.
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