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लड़कियों में नहीं होती आधुनिक तकनीकों को समझने की शक्ति

girl using smartphonesप्राय: देखा जाता है कि जब भी कॅरियर चयन की बात आती है तो लड़कियां अध्यापन और कला संबंधी विषयों में अधिक रुचि दिखाती हैं वहीं लड़के तकनीकी और व्यावहारिक क्षेत्रों में जाना ज्यादा पसंद करते हैं. हम इन कॅरियर प्राथमिकताओं को व्यक्ति का अपना रुझान और स्वभाव कह सकते हैं लेकिन एक नए अध्ययन ने यह प्रमाणित किया है कि लड़कियां तकनीक के क्षेत्र में कमजोर होती हैं इसीलिए वह ऐसे किसी कॅरियर को स्वीकारना नहीं चाहतीं जिसमें उन्हें तकनीकों को समझने में समय गुजारना पड़े.


लंदन के लोवा विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने अपने सर्वेक्षण में यह बात प्रमाणित की है कि लड़कियों का तकनीकों से दूर भागना, उनमें दिलचस्पी ना दिखाना उनकी इस क्षेत्र में रुचि ना होने के कारण है. अर्थात लड़कियां इस क्षेत्र में कॅरियर बनाना इसीलिए नहीं चाहतीं क्योंकि वह तकनीकों में दिलचस्पी ही नहीं रखतीं.


डेली मेल में प्रकाशित हुई इस रिपोर्ट के अनुसार मुख्य शोधकर्ता फ्रेंक श्मिट का कहना है कि भले ही लड़कियों को तकनीक और प्रौद्योगिकी में रुचि ना हो लेकिन अगर उन्हें नौकरी करनी हो तो वह अपनी लगन और मेहनत से इस क्षेत्र में नाम कमा सकती हैं.


उपरोक्त अध्ययन और उसके नतीजे पढ़ने के बाद यह प्रश्न स्वत: ही अवतरित हो जाता है कि अगर यह बात सही है कि महिलाओं को पुरुषों की तरह व्यावहारिक कार्यक्षेत्रों में रुचि नहीं होती; वह बस हलके-फुलके कामों में ही अच्छा प्रदर्शन कर सकती हैं तो उन लड़कियों का क्या जो लड़कों की ही तरह नई-नई तकनीकों से लैस आधुनिक गैजेट जैसे मोबाइल फोन, आई-पैड, लैपटॉप आदि के फीचर्स को पूरी तन्मयता से समझने का प्रयास करती हैं? इतना ही नहीं ऐसी कई महिलाएं हैं जो पुरुषों की ही तरह तकनीक से संबंधित क्षेत्रों में एक सफल मुकाम पा चुकी हैं?


भले ही इस शोध के वैज्ञानिक महिलाओं की तकनीक के क्षेत्र में असफलता को अरुचि का परिणाम मान रहे हों लेकिन इस शोध से पहले भी वैज्ञानिक यह दावा कर चुके हैं कि महिलाएं स्वाभाविक रूप से तकनीकों में दिलचस्पी विकसित नहीं कर पातीं. उनकी स्थापनाएं ना सिर्फ विदेशी महिलाओं पर बल्कि भारतीय महिलाओं पर भी समान रूप से लागू होती हैं.


वैज्ञानिकों के अनुसार मस्तिष्क में दो भाग होते हैं जिनमें से एक व्यक्ति के व्यावहारिक पक्ष को संचालित करता है और दूसरा भावनात्मक पक्ष को. ऐसा माना जाता है कि जिन लोगों का व्यावहारिक पक्ष मजबूत होता है, उन लोगों का भावनात्मक पक्ष ज्यादा सफल नहीं होता. इसके विपरीत वे लोग जिनका भावनात्मक पक्ष ज्यादा मजबूत होता है वह प्रयोगवादी विषयों और व्यवाहारिक मानसिकता में ज्यादा रुचि नहीं रखते. मस्तिष्क के दोनों हिस्से समान रूप से कार्य नहीं करते. जिसका व्यवहारिक पक्ष सशक्त होता है वह भावनाओं के मामले में कमजोर होता है और जिसका भावनात्मक पक्ष मजबूत होता है वह तकनीकों या प्रौद्योगिकी से जुड़े क्षेत्रों में दिलचस्पी नहीं दिखाता.


महिलाओं के विषय में यह माना जाता है कि वह भावनात्मक तौर पर पुरुषों से ज्यादा मजबूत होती हैं. वह ना सिर्फ सहनशील बल्कि विनम्र और संबंधों के प्रति कहीं ज्यादा संजीदा होती हैं. यही कारण है कि वह पुरुषों की तरह आधुनिक तकनीकों में रुचि दिखाने के बजाय परंपरागत कॅरियर क्षेत्रों में ही अपने लिए स्थान सुनिश्चित करती हैं.


इतना ही नहीं वैज्ञानिकों का तो यह भी कहना है कि वे पुरुष जो अध्यापन और कला क्षेत्रों में रुचि रखते हैं उनमें कही ना कहीं स्त्रीत्व के गुण ज्यादा होते हैं. अर्थात उनके भीतर फीमेल हार्मोनों की प्रधानता ज्यादा होती है. वहीं वे महिलाएं जो तकनीकों और गैजेटों में ज्यादा दिलचस्पी लेती हैं उनमें पुरुषत्व के हार्मोन प्रभावी होते हैं.


क्योंकि प्राकृतिक रूप से कलात्मक व्यवहार ही महिलाओं का नैसर्गिक गुण होता है, वह नई चीजों विशेषकर तकनीक, विज्ञान और गणित में ज्यादा सफल नहीं हो पातीं. पुरुषों के विषय में अकसर यही कहा जाता है कि वह स्वयं को घरेलू बंधनों में बांध कर नहीं रख पाते. बच्चों की परवरिश की ओर ध्यान नहीं देते, इत्यादि. लेकिन उनका यह स्वभाव स्वाभाविक है कि वह महिलाओं की तरह परंपरागत चीजों पर ध्यान देना जरूरी नहीं समझते.


लेकिन क्या उक्त अध्ययन और वैज्ञानिक सिद्धांत सही हैं या फिर यह भी महिलाओं को पुरुषों के समक्ष कमजोर साबित करने के लिए ही गढ़े गए हैं यह बात बहस का विषय हो सकती है.


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