संतुलन जीवन का आधार होता है. परिवार में संतुलन सहित निज़ी जीवन, सामाजिक जीवन और व्यावसायिक जीवन में संतुलन खुशहाल जीवन का मंत्रा होता है. पहले जहां पुरुष को निजी जीवन के साथ-साथ व्यावसायिक जीवन में संतुलन बिठाना पड़ता था वहीं महिलाओं को निजी और सामाजिक जीवन के साथ सामंजस्य बिठाना पड़ता था.
समय बदला, पहले जहां महिलाएं केवल गृह कार्य किया करती थीं वहीं अब वह पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर हर क्षेत्र में बराबर की भागीदार हैं. आज महिलाएं केवल गृहणी नहीं रह गईं अपितु वह आज दफ्तर भी जाने लगी हैं. महिलाओं की भूमिका में बदलाव का सीधा प्रभाव उनके जीवन पर पड़ा. इस बदलाव के कारण महिलाओं का संतुलित जीवन भी प्रभावित हुआ, लेकिन कुछ ही समय के लिए. आज ज़्यादातर महिलाएं एक संतुलित जीवन व्यतीत कर रही हैं.
वास्तविकता यह है कि महिलाएं खुद चाहती हैं कि उनके निज़ी और व्यावसायिक जीवन के बीच संतुलन बना रहे. एक शोध ने भी महिलाओं की इस जीवनशैली पर मुहर लगाई है. इस शोध से पता चलता है कि दफ्तर या काम पर जाने वाली ज्यादातर भारतीय महिलाएं अपने निज़ी जीवन को अपने व्यावसायिक जीवन से अलग रखती हैं.
इस शोध के लिए मनोवैज्ञानिक दल ने करीबन 2,500 विवाहित एवं अविवाहित महिलाओं की उनके जीवन के विषय पर प्रतिक्रिया ली. शोध में शामिल 95 प्रतिशत महिलाओं का कहना था कि जीवन में सफलता तभी मिल सकती है जब आपका जीवन संतुलित हो खासकर आपके निज़ी जीवन और व्यावसायिक जीवन में संतुलन हो क्योंकि आप ऑफिस का काम घर नहीं ला सकते और घर के मसले ऑफिस में हल नहीं कर सकते.
पुरुष भी आगे
इस शोध में शामिल शादीशुदा महिलाओं का कहना था कि केवल महिलाएं ही नहीं बल्कि पुरुष भी अपने जीवन में संतुलन रखते हैं और वह घर चलाने और बच्चों की देखभाल में अपने पत्नियों का काफ़ी सहयोग भी करते हैं.
शोध से पता चलता है कि वाकई भारतीय महिलाओं और पुरुषों की सोच जीवन को खुशहाल बनाने पर आधारित होती है.
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