भारतीय समाज में शादी-विवाह जैसे संस्कारों का महत्व नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. आज भले ही पश्चिमी देशों की देखा-देखी हम भी खुद को खुले विचारों वाला बताकर लिव-इन रिलेशनशिप्स और विवाह से पहले अफेयर जैसे संबंधों को स्वीकृति देने के मूड में आ गए हैं लेकिन हमारे मौलिक सिद्धांत और परंपराएं एक महिला और पुरुष के बीच संबंध को तभी मान्यता देते हैं जब वह विवाहित हों. यही वजह है कि आज भी भारतीय परिदृश्य में विवाह की महत्ता को कम आंककर देखा नहीं जा सकता.
शादी में निभाई जाने वाली रस्मों के बारे में आपने कई बार सुना होगा, कई बार आप इन सभी रस्मों-रिवाजों के साक्षी भी बने होंगे लेकिन बहुत से लोग आज भी इन रस्मों का अर्थ नहीं समझते. चलिए कोई बात नहीं आज हम आपको विवाह में निभाई जाने वाली महत्वपूर्ण रस्मों और उनकी उपयोगिता के विषय में बताते हैं:
1. पत्र लिखनम: कुंडली-मिलान, दो परिवारों और संबंधित युवक-युवती की स्वीकृति मिलने और ग्रह-नक्षत्रों, शुभ-अशुभ सभी बातों का ध्यान रखने के बाद विवाह का दिन निश्चित किया जाता है. हिन्दू रीति-रिवाजों में विवाह संस्कार 16 दिनों तक चलता है. सभी तरह से आश्वस्त होने के बाद मेहमानों को आमंत्रित करने के लिए शादी के कार्ड छपवाए जाते हैं.
2. निश्चय महोत्सव: आम भाषा में इसे रिंग सेरेमनी या सगाई कहते हैं. यह निश्चित करता है कि होने वाले वर-वधू और उनके परिवार वाले एक-दूसरे को स्वीकार करते हैं. इस दिन यह निश्चित हो जाता है कि आने वाले समय में ये दो परिवार एक-दूसरे के सुख-दुख के साथी होंगे और हर मौके-बेमौके आपसी साथ निभाएंगे और साथ ही नव दंपत्ति को हर संभव सहयोग प्रदान करेंगे.
3. हल्दी की रस्म: विवाह वाले दिन निभाई जाने वाली इस रस्म में होने वाले वर-वधू हल्दी के पानी से स्नान करते हैं. इसक वैज्ञानिक पहलू कहता है कि हल्दी एक प्राकृतिक एंटी-बायटिक होती है इसलिए ऐसा किया जाता है. सबसे पहले वर हल्दी में स्नान करता है और उसके बाद वधू अपने घर में हल्दी के पानी में नहाती है. इस रस्म से जुड़े सभी के अपने-अपने तरीके और मान्यताएं होती हैं. बहुत से लोग घर में ही हल्दी पीसकर उससे स्नान करवाते हैं.
4. मंडप स्थापना: दो परिवार अपने-अपने घरों में लकड़ी की एक डंडी की स्थापना करते हैं. आमतौर पर हल्दी की रस्म और मंडप स्थापना एक ही दिन होती है जो यह बताता है कि घर का एक बच्चा अपनी नई जिन्दगी की शुरुआत करने जा रहा है. 16 दिनों तक चलने वाले विवाह समारोह के समापन के बाद ही यह डंडी निकाली जाती है.
5. वर मंगल स्नान: 16 दिन तक वर और वधू को विभिन्न जड़ी-बूटियों और तेल में स्नान करवाया जाता है. इसका अर्थ सिर्फ स्नान से नहीं बल्कि उनकी आत्मा और भीतरी स्वच्छता से भी होता है. मानसिक शांति हासिल करने और किसी भी तरह की बुरी नजर से मुक्ति पाने के लिए ऐसा किया जाता है. ये रस्म सुहागनों द्वारा पूर्ण की जाती है.
6. वर सत्कार: बारात के स्वागत को वर सत्कार कहा जाता है. जब मंडप में वर और उसके परिवार वाले प्रवेश करते हैं वधू की माता वर के माथे पर तिलक कर उस पर चावल छिड़ककर उसका स्वागत करती है.
7. मधुपरक सेरेमनी: वधू का पिता वर को वेदी पर ले जाता है और वहां उसे तोहफे दिए जाते हैं.
8. कन्यादान: पवित्र मंत्रों की गूंज में वधू के पिता उसका हाथ वर के हाथों में सौंपते हैं.
9. गणपति पूजन: भगवान गणेश को विघ्नहर्ता के रूप में जाना जाता है इसलिए विवाह की रस्म प्रारंभ होने से पहले गणेश पूजन किया जाता है.
10. पाणि ग्रहण: वर, वधू का सीधा हाथ अपने हाथ लेकर उसे अपनी पत्नी स्वीकार करता है.
11. प्रतिज्ञाकरण: परिवारवालों की उपस्थिति में वर-वधू अग्नि के फेरे लेकर आजीवन ईमानदारी के साथ पति-पत्नी के रूप में रहने का निश्चय करते हैं.
12. शिला आरोहण: वधू की मां उसे पत्थर की एक पटिया से गुजारकर अपनी नई जिन्दगी की शुरुआत करने के लिए कहती है.
13. लजा-होम: अपने पति के हाथ के ऊपर हाथ रखकर वधू अग्नि को चावल समर्पित करती है.
14. मंगल फेरे या सप्तपदी: वर-वधू अग्नि के आसपास सात फेरे लेकर धार्मिक और सामाजिक तौर पर पति-पत्नी हो जाते हैं.
15. अभिषेक: पवित्र जल वर-वधू पर छिड़का जाता है.
16. अन्न प्राशन: विवाह संपन्न होने के बाद परिवारवाले एक-दूसरे के साथ खाना खाते हैं. वर-वधू अपने प्रेम की निशानी के तौर पर एक-दूसरे को अपने हाथ से खाना खिलाते हैं.
17. आशीर्वाद: रस्में पूरी होने के बाद वर-वधू अपने से बड़ों का आशीर्वाद लेने जाते हैं.
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