सोशल नेटवर्किंग साइटों की बढ़ती लोकप्रियता के बीच शायद किसी ने इस ओर ध्यान नहीं दिया कि फेसबुक और ट्विटर पर अधिक समय बिताने से व्यक्ति के आत्मविश्वास को कितना गहरा आघात पड़ता है. एक नए सर्वेक्षण की मानें तो इन सोशल नेटवर्किंग साइटों का उपयोग करने वाले लोगों में अपने अन्य दोस्तों से आगे निकलने की अजीब सी होड़ लग जाती है. अगर उनके दोस्तों की तस्वीरों और स्टेटस को अधिक पसंद किया जा रहा है या उनके पास फ्रेंड रिक्वेस्ट अधिक आती है तो इससे उनका अपना आत्मविश्वास टूटने लगता है. व्यक्ति खुद को अपने अन्य दोस्तों की अपेक्षा कमतर आंकने लगता है.
यूनिवर्सिटी ऑफ सेलफोर्ड द्वारा संपन्न इस अध्ययन में यह बात सामने आई है कि सोशल नेटवर्किंग साइटों का अधिक प्रयोग कई नकारात्मक परिणामों का कारण बन सकता है. इस सर्वेक्षण में शामिल लोगों में अधिकांश ने यह बात स्वीकार की है कि जबसे उन्होंने फेसबुक और ट्विटर को अपना ज्यादा समय देना शुरू किया है तभी से उनका व्यवहार बदलने लगा है. दो तिहाई लोगों का मानना है कि जिस दिन वह इन साइटों पर अधिक समय बिताते हैं उस दिन उन्हें मानसिक रूप से आराम नहीं मिलता. एक चौथाई लोगों का कहना था कि यदि ऑनलाइन दोस्तों के साथ उनका कोई विवाद हो जाता है तो वह खुद को अपने वास्तविक दोस्तों और संबंधियों के साथ बेहद असहज महसूस करते हैं. कार्यस्थल पर भी उनका व्यवहार बदला-बदला सा रहता है. बहुत से लोगों का तो यह भी कहना है कि अगर किसी दिन फेसबुक और ट्विटर तक अपनी पहुंच नहीं बना पाते तो उन्हें इस बात की चिंता होने लगती है.
ब्रिटिश समाचारपत्र टेलिग्राफ में प्रकाशित इस रिपोर्ट के अनुसार यूनिवर्सिटी से संबद्ध और इस सर्वेक्षण की मुखिया मनोवैज्ञानिक लिंडा ब्लेयर का कहना है कि लगभग 300 लोगों पर हुए इस अध्ययन के अनुसार यह बात स्पष्ट हुई है कि वे लोग जो सोशल नेटवर्किंग साइट पर मौजूद अपने ऑनलाइन दोस्तों की अपेक्षाओं पर खरा नहीं उतर पाते वे मानसिक तनाव की गिरफ्त में चले जाते हैं.
निश्चित तौर पर यह सर्वेक्षण इंटरनेट की बढ़ती लत की ओर इशारा करता है. भारतीय परिदृश्य के अनुरूप अगर इस शोध को देखा जाए तो बिना किसी आधार के हम यह मान लेते हैं कि युवावर्ग ही इन सोशल नेटवर्किंग साइटों पर अपना अधिक समय बिताता है. हालांकि यह कथन भी गलत नहीं है लेकिन ना सिर्फ कॉलेज या स्कूल में पढ़ने वाले बच्चे ही फेसबुक और ट्विटर का प्रयोग करते हैं बल्कि कामकाजी वर्ग और गृहणियां भी इनके प्रयोग में बराबरी की हिस्सेदारी निभाते हैं.
काम के बीच थोड़ा समय निकाल कर या खुद को रिफ्रेश करने के लिए अगर ऑनलाइन चैट की जाए तो इसमें कोई बुराई नहीं है लेकिन अगर आप अपना सारा काम छोड़ और वास्तविक दुनिया को नजरअंदाज कर आभासी दुनिया में मशगूल हो जाते हैं तो निःसंदेह ऐसा व्यवहार चिंताजनक है. इसीलिए हमें अपनी प्राथमिकताओं और प्रमुखताओं को समझते हुए नेट पर बिताए जाने वाले समय और अपने परिवार को दिए जाने वाले समय के बीच सामंजस्य बैठा लेना चाहिए.
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