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बच्चे को मैथ्स चैंपियन बनाना है तो रोज पूछें एक पहेली !!

parents and childअकसर बच्चों को मैथ्स के सवाल बेहद पेचीदा लगते हैं, इन्हें सुलझाने से बेहतर वह इनसे दूर भागना ज्यादा पसंद करते हैं. लेकिन गणित पाठ्यक्रम का एक महत्वपूर्ण विषय होता है इसीलिए अभिभावक बच्चों को अच्छी से अच्छी ट्यूशन और उनके लिए उपयोगी सामग्री मुहैया करवाकर उनसे अच्छे प्रदर्शन की उम्मीद करने लगते हैं.


लेकिन उनके यह प्रयास बच्चों के भीतर ना तो मैथ्स के लिए दिलचस्पी विकसित कर पाते हैं और ना ही मैथ्स के सवालों से जुड़े डर को कम कर पाते हैं. अबेकस क्लासेस आदि में भेजकर वह बच्चों के मस्तिष्क में बैठे डर को समाप्त करने की कोशिश करते हैं पर कुछ खास सफलता हासिल नहीं कर पाते.


अगर आप भी उन अभिभावकों में से हैं जिनके बच्चे गणित में रुचि लेने की बजाय उसे हर समय टालने की कोशिश करते हैं तो आपको अधिक परेशान रहने की कोई जरूरत नहीं है. वैज्ञानिकों का कहना है कि अगर अभिभावक अपने बच्चों से रोजाना पहेलियां हल करवाएं या उन्हें खेल-खेल में पहेलियां सुलझाने को कहते हैं तो इससे उनके बच्चे की मैथ्स के प्रति रुचि बढ़ती है. इसके अलावा बच्चों का गणितीय कौशल भी बेहतर होता है.


शिकागो यूनिवर्सिटी (अमेरिका) के शोधकर्ताओं का कहना है कि पहेलियां बुझाने और उनके विषय में सोचने वाले बच्चे मैथ्स के प्रति ज्यादा रुचि लेते हैं. रिसर्चरों की एक टीम ने अभिभावकों और बच्चों की 53 जोड़ियों को अपनी इस स्टडी में शामिल किया, जिसके बाद यह स्थापित किया गया कि 2 से 4 साल तक के वे बच्चे जो पहेलियां बुझाने में दिलचस्पी लेते हैं उनका मस्तिष्क अपेक्षाकृत अधिक विचारशील और सवाल सुलझाने में सक्षम होता है. वह तर्क के माध्यम से गणितीय सवालों को आसानी से हल कर सकते हैं.


इस शोध के अंतर्गत वैज्ञानिकों ने अभिभावकों से कहा कि वे अपने बच्चों के साथ वैसे ही वार्तालाप करें जैसे वो अकसर करते हैं. अभिभावकों ने बच्चों से कुछ पहेलियां पूछीं, जिनमें लगभग आधे बच्चों ने कम से कम एक बार पहेलियां हल की थीं.


इस दौरान यह बात सामने आई कि जो बच्चे पहेलियां हल कर सकते हैं वे मैथ्स के सवाल भी आसानी से सुलझा लेते हैं. उन्हें किसी खास परेशानी का सामना नहीं करना पड़ता. साथ ही यह बच्चों की समझ और तर्क शक्ति को भी बढ़ाता है.


अमेरिका में हुए इस अध्ययन को भारतीय माता-पिता भी अपने बच्चों पर आजमा सकते हैं. बाल मस्तिष्क एक समान होता है, उस पर पड़ने वाले प्रभाव भी समान ही होते हैं. इसीलिए इस शोध को विदेशी अध्ययन मानकर नजरअंदाज करना न्यायोचित नहीं कहा जाएगा.


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