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कौन कहता है सॉफ्ट ड्रिंक्स से मोटापा बढ़ता है !! How soft drinks affects our health

drinking soft drinksबहुत से लोगों का यह मानना है कि सॉफ्ट ड्रिंक का अत्याधिक सेवन करना व्यक्ति के स्वास्थ्य को नकारात्मक रूप से प्रभावित करता है. इसके विपरीत जूस और लेमनेड के सेवन को स्वस्थ शरीर के लिए जरूरी माना जाता है. लेकिन हाल ही में हुए एक अध्ययन पर ध्यान दें तो यह बात प्रमाणित की गई है कि सार्वजिनक रूप से स्वीकृत यह धारणा निराधार ही प्रतीत होती है. क्योंकि कनाडा में हुई एक नई रिसर्च के अनुसार आर्टिफिशियल स्वीटेंड ड्रिंक का मोटापे के साथ कुछ खास संबंध नहीं है.


कनाडियाई बच्चों की सेहत पर सॉफ्ट ड्रिंक के पड़ने वाले प्रभावों की जांच करने के लिए यह अध्ययन संपन्न किया गया. इसमें यह बात साबित हुई है कि इनके सेवन का नकारात्मक प्रभाव सिर्फ 6-11 आयु वर्ग के लड़कों पर ही पड़ता है.


इस शोध से जुड़े लेखक सुसान जे. का कहना है कि सभी बच्चों को सॉफ्ट-ड्रिंक और अन्य स्वीटेंड पदार्थों का सेवन करना बहुत पसंद होता है. लेकिन अगर आगामी जीवन में वे कभी मोटापे या फिर ओबेसिटी के शिकार हो जाते हैं तो इसका यह अर्थ कतई नहीं है कि सॉफ्ट ड्रिंक के कारण वह मोटापे से ग्रस्त हुए हैं. बल्कि सच तो यह है कि आर्टिफिशियल स्वीटेंड ड्रिंक्स और मोटापे का आपस में कोई संबंध नहीं है.


सुसान का यह भी कहना है कि खाने-पीने से जुड़ी सभी आदतें बचपन में ही विकसित हो जाती हैं. वयस्क होने के बावजूद इनसे निजात पाना बेहद मुश्किल हो जाता है. गलत खानपान और सॉफ्ट ड्रिंक्स का अत्याधिक सेवन करना मोटापे को आमंत्रण देने जैसा अवश्य है लेकिन इसका खासा असर एक निश्चित आयु वर्ग के उन लड़कों पर पड़ता है जो अन्य बच्चों की अपेक्षा इन सब पेय पदार्थों का अधिक सेवन करते हैं.


विभिन्न आयु वर्ग और पसंद वाले लोगों पर हुए अध्ययन में यह देखा गया कि लोगों की प्राथमिकताओं में कितना अंतर होता है. इस स्टडी में स्वीटेंड, कम पोषक तत्वों को कनाडियन फूडगाइड के अनुसार अलग-अलग श्रेणियों में रखा गया. इनमें फलों के जूस, चाय और कॉफी को भी शामिल किया गया.


एप्लाइड फिजियोलॉजी, न्यूट्रिशन, मेटाबोलिज्म के अंक में प्रकाशित होने वाले इस रिपोर्ट में शोधकर्ताओं का कहना है कि कनाडियाई बच्चों के मोटापा ग्रस्त होने के पीछे उनकी पारिवारिक आय, घर में पसंद किया जाने वाला खाद्य और खानपान की पसंदगी है ना कि सॉफ्ट ड्रिंक्स का सेवन.


उपरोक्त अध्ययन को अगर हम भारतीय परिदृश्य के अनुसार देखें तो यहां भी अधिकंश बच्चे गलत खानपान और शरीर में पोषक तत्वों की कमी जैसी अवस्थाओं का सामना कर रहे हैं. निश्चित रूप से इसके पीछे खेलकूद में आने वाली कमी और माता-पिता का अत्याधिक दुलार है. अभिभावक बच्चों की सेहत और उनके वजन को दरकिनार कर उनके खानपान पर नियंत्रण लगाना जरूरी नहीं समझते. वहीं दूसरी ओर सॉफ्टड्रिंक्स और बाजार में मिलने वाले डिब्बा बंद जूस में पाई जाने वाली कैलोरी की मात्रा को भी हम नजरअंदाज नहीं कर सकते. बच्चे चाहे किसी भी देश या समाज के क्यों ना हों, संबंधित राष्ट्र का भविष्य होते हैं जिनकी सेहत के साथ खिलवाड़ किया जाना किसी भी दृष्टिकोण से सही नहीं कहा जा सकता.


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